मेरे इक्कीस सुमन..... १-जय कपिवर जय,जय हनुमाना । मैं तव दास मुझे अभिमाना ।। २-तुम मम देवा मैं तव दासा। मैं तम हूँ प्रभु तुम प्रकाशा ।। ३-कठिन राह है प्रभु जीवन की। आओ हरो व्य…
हे गिरिधारी............. हे गिरिधारी,हे गोपाला । तुम ही हो जग के प्रतिपाला।। जगती को संकट ने घेरा । कहीं न दिखता देव सवेरा ।। धरती होगी रीती नर से ? करिये आकर पार भँवर से ।। हे मधुसूद…
सागर के दोहे............ १- हँसकर मेरे गाँव का, कहता फूल बुराँस । आयेगी रे लालिमा , रखना उर में आस ।। २- बूढ़े , बालक साथ में, करते भो…
मेरे दोहे 1-मक्खी ढूँढे गन्दगी,अलि ढूँढे मधुपान | ढूँढे से दोनों मिलें,अपना-अपना ग्यान || 2-ब्रह्म घड़ी में जो उठे,वो पाये आनन्द | सागर ऊषा में खुलैं,हरि द्वार जो बन्द || 3-माँ की ह…
सावन की मधुशाला...... भीग-भीगकर पीता हूं मैं , घन ने भेजी है हाला । सजी धरा पर है सावन की , आज मधुर सी मधुशाला ।। बूंदों को चुन-चुनकर के , …
ओ चित्रकार........... कहां छुपे हो ओ चित्रकार ? अनुपम चित्र उकेर रहे नित , जादू सा तुम फेर रहे नित । घन ये श्वेत श्याम हुये हैं , देख नयन अविराम हुये हैं ।। स्वर्ग ध…
यारो............. हां ये बहुत ही कठिन सी बला है यारो , गम पीना भी एक बड़ी कला है यारो । फूलों का मजा यहां वही ले सकता है , जिसका बचपन कांटों में पला हो यारो । गम पीना भी एक बड़ी कल…
मां............ बड़ा पिशुन हूं बड़ा कुटिल हूं , फिर भी मां तुम प्यार करोगी । क्रमहीन मेरे शब्दों का , कह दो मां श्रिंगार करोगी ।। आंसू लिखते नई कथायें , …
गांव की मिट्टी में जान थी यारो वो सौ-सौ गुणों की खान थी यारो , गांव की मिट्टी में जान थी यारो । न थी बीमारी न सांसों का टोटा , वो सम्हाले रखती प्रान थी यारो । गांव की मिट्टी …
डा०विद्यासागर कापड़ी के दोहे १-घन तू बैरी हो गया, पिय तो हैं परदेश । उमड़-घुमड़ तू गगन में, खोल रहा है केश।। २-घन तू होके बावरा , …
चाहत............ सुमित्र बनाने की है उर में चाह गहन सी, अरे पतित हूं या हूं पावन कैसे कह दूं । हां सुप्त है मेरे उर के सपनों का कानन, अरे आ गया मधुरिम सावन कैसे कह दूं।। मुझे दूसरों को जान…
जलता रहूंगा............ ध्येय पथ पर शूल हैं तो , क्या मैं मंजिल को भुला दूं । पथ पर हैं कंकर बिछे तो, क्या मैं सपन को सुला दूं।। मैं मनुज हूं जो तिमिर में, दी…
कुर्सी.............. कुर्सी तो मिलती है भैया , सुन लो चाय पिलाने से । कुर्सी कहां मिला करती है , आंखों के मटकाने से ।। कुर्सी तो मिलती है भैया, सुन ल…
कान्हा............... कान्हा ।अब बरसत हैं यहां नैन हमारे । काहे ,दे गये छलिया झूठी आशा। नित दरश की बढ़ती जाये पिपासा।। कह दे हमको, छोड़ा किसके सहारे । कान्हा अब बरसत हैं यहां नैन हमारे ।। …
मधुशाला अरि के उर हो प्रतिशोध की, धधक रही बड़ी ज्वाला | उसको नीर बना सकती है, वाणी की ही मधुशाला || यदि कोई रखता हो उर में, गरल मिली थोड़ी हाला | मैं उसके हित…
मधुशाला दीप जलाकर नव मयूख से, खोल दिया उर का ताला | नवल दिवस में भेज रहा हूँ , शुभ स्मृति की मधुशाला || हृदय में नव आनन्दों का, छलके परिमल का प्याला | और बुलाये …
मेरे दोहे 1-कौन देखता घन यहाँ ,कौन झूलता डाल | धन की गठरी बाँधते ,बुनते सब जंजाल || 2-घन ही तो करते यहाँ ,धरणी का श्रिंगार | मुस्काते हैं खेत सब ,हँसती वट की डार || 3-घन की चादर ओढ़कर…
मेरे दोहे 1-बनी रहे नित आपके ,अधरों पर मुस्कान | नित रसना करती रहे,केशव का गुणगान || 2-ऐक दिया भी तम गहन ,देता है नित चीर | ऐक मनुज यदि ठान ले ,खींचे नई लकीर || 3-खाली धरती ना रहे ,लगे…
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