सागर के दोहे............
१- हँसकर मेरे गाँव का,
कहता फूल बुराँस ।
आयेगी रे लालिमा ,

२- बूढ़े , बालक साथ में,
करते भोजन यार ।
बड़े दिनों के बाद ये,
लगता है परिवार ।।
३- मोदी जी अवतार हैं ,
कलियुग के भगवान ।
अँधियारा हरते सदा,
लाते मधुर विहान ।।
४- ताने देकर गाँव की,
कहती जौ की बाल ।
अरे गाँव ही दु:ख में ,
बनता तेरी ढाल ।।
५- चुड़कानी हँस कह रही,
आई मेरी याद ।
आया अपने गाँव तू,
बड़े दिनों के बाद।।
६- मेरे स्वागत में खिला,
जंगल में क्वेराल ।
लाली लेकर है खड़ी ,
मधुर बुराँसी डाल ।।
७- चीं-चीं,पौं-पौं से भला,
अरे सुहाना मौन ।
बिना मोल का ध्यान है,
पाता जग में कौन ?।।
८- फूलों का सिरमौर है ,
वन का लाल बुराँस ।
इस विपदा के काल में,
बाँटे मधुर उछास ।।
९- अब तक मूरख ही रहे,
निज से था नित बैर ।
घूमे बाहर, की नहीं ,
उर अन्दर की सैर ।।
१०-उर में रख विश्वास तू ,
है ये सच्ची बात ।
रजनी पलछिन की बची,
आना है प्रभात ।।
११- भारत करना है तुझे,
काग घटा को दूर ।
कोरोना आगे खड़ा ,
मानवता मजबूर ।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
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1 टिप्पणियाँ
उत्कृष्ट
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