कै गौं जाण?
✍️ ©®सुनीता ध्यानी.
कोटद्वार बटि सुबेर 6 बजि रोडवेज चल त सवारि भौत जादा नि छाइ... हर खिड़की पर एक सवरि बैठीं छै... कखि-कखि म तीन सीटों म द्वी सवरि छाया| सवरियों म कुछ ज्वान नौंनूँ न त कंदुड़ू तार(हेडफोन) घुसयाँ छाइ..., नौनि छै एक आध वो भि वट्सऐप पर लगीं छैई सैद| कुछेक अधेड़ च्यालों थै बीड़ी तलब मा रचपचाट हुयूँ छाइ अर बाकि आधार कार्ड वला दाना/ वरिष्ठ नागरिक अपड़ी दुन्या म झणि कै सोच मा चुप्प बैठ्या छाइ| डरैबरन गाड़ि स्टार्ट करि त जण चारैक सवरियों न भगवानो नौं का हाथ ज्वड़िं... कन्डक्टर भुला टिकट ल्हीण बैठिग्या|
गाड़ी घुँघ्याट सुणणा सबि बकि कुछ ना... | एक सीट म एक दानि ब्यठुलि अर एक खूब ज्वान नौनुं बैठ्यूँ छाइ, वो नौनु शकळ से त ख्यलक्वार-हैंसाड़ लगणूँ छाइ पर क्य पता प्यटै-प्याट क्य स्वचणूँ छाइ अर चुप्प ही हुयूँ छाइ| जरा सि देर म दुगड्डा पौंछि बस त वेका बाद धुमाकोट-रथुवाढाब वळि सड़क पर दौड़ण बैठिग्या|
अगनै जैकि वीं दानि ब्यठुलि से चुप नि रैया बल कै-कै गौं का छवा रे नौनाओ!!! कख-कख जाण तुमल?
हौरुन त कैन कुछ नि बोलि पर
समिणि बैठ्यूँ वो ख्यलक्वार सि दिखेण वळु नौंनु, जैकि मुबैले बैटरी डौन हुयीं रै होलि, भाँ वेमा नेट ही नि रै होलु, भाँ वेथै फोनै नसा नि रै होलु, वेन जवाब दे:- "मि त फुंड धुमाकोट से अगनै कु छौं|"
दानि बुढड़ि सरैल मा जनु प्राण सरकि होलु, बल:- "धुमाकोट?? उनै की मि भि त छौं रै लाटा! पर तु कै गौं कु छै?"
नौनु:- मि ता खुटिड़ से अगनै...
(अब सब्यों का कंदूड़ ऊँ द्विया सवर्यों छुयूँ थै सुणणौ खड़ा ह्वेगिन.... सुनपट्ट कंदूड़ म छ्वीं जाणी छै अर मनोरंजन का दगड़ जाण पछ्याण भि हूणीं छै पर बात फिर भि हौरि सवर्यों न कैन नि करि बस सुणणो आनंद ल्हीणा छाइ|
बुढड़ि-: खुटिड़ा त पट्ट पाँच छन तु कै खुटिड़ा कु छै?
नौनु:- खुटिड़ न बुनै वख से भि ऐथर जाण मिन त बाड़ागाड़ सिमटणै छोड़...
बुढड़ि:- हे रै नौना सिमटण त मिन भि जाण.... तिन बाड़ागाड़ जाणै कि सिमटण?
नौनू:- सिमटण|
बुढड़ि:- सैमटण कैका घार?
नौनु:-जो सबसे तैल्या कूड़ु च|
बुढड़ि:- सबसे तैल्या त हमरु कूड़ु च|
अब त सब सवरियों दगड़ कंडक्टर कि नजर भि बैठद-उतरद सवर्यों पर कम अर यूँ द्वियों कि छुयों म जादा छै...
बुढड़ि फिर ब्वन बैठ:- " कैकु नौनु छै, बबा नौं क्या च तेरु?"
नौनु-: मंगल सिंह च मेरो बबाजी नौं|
बुढड़ि-" दै ल्वाल करा!! वो त म्यारु ही बुढ्या च...जनकै रैणा होला बुबा अजगाल यखुलि!
तु भि छुचा !!!!इनु बोलि कि तु म्यारु ही नौनु छै...!"
अर बुढड़ि भुक्कि पेकि मुण्ड मलसण बैठि ग्य अपड़ा नौना कि, त जो सवरि यूँ छुयों थै ढौंटियाळ आंद- आंद तक सुणणा छाइ वो हर्बि हैंसणा, हर्बि ब्वना बल- " तुम माँ- लड़िक हमथै बेकूफ बणाणा छाय उबरि बटि कि तुम अफि बेकूफ छवा?"
तब वे नौना न बोलि- "मेरि माँ गाड़ि म चुप नि बैठ सकदि, कैदिन बटि मिलणसार टैपै च...इनि जीवन जियूँ च यूँकु!! सबु थै अपन्याण जणद, पुछण जणद, हार-सार रखण भि जणद... पर लोग नि जणदा कि या बुढड़ि क्या जणद? माँ न हमथै भि संस्कार त भला दियाँ छन ब्वन- बच्याणा का पर हम भि अब 'जन देस उन भेस' सोचिके चुप रंदौं..अजगालै लोग न बच्यांदा न ब्वल्यांदा... इलै मि माँ कु दगड़ बच्याणूँ रौं कि माँ थै पता रौ अर विश्वास रौ कि दुन्या म अजि बाच-बचन भि अर जाण-पछ्याण भि बच्याँ छन|"
उन माँ थै सब पता च... पर वा भि मी दगड़ि यीं छित्ति-मित्ति बतों म मिसे ग्य बोलिके सफर त कटेलु जरा अर उल्टियों फर भि ध्यान नि जालु!"
सब वे नौनु थै सुणणा त जौंन कंदुड़ू तार कुचयाँ छा फोना का ऊँन निकाळी खीसा उंद धैर दिन अर छुयों म मिसे गिन|☺
बुढड़ि खितगिणि मारी हैंस बल:- जमना! हे जमना! कदगै रंग-ढंग देखयलिन त्यारा.... अफु दगड़ि अफि बच्याणु बाकि रयूँ अब त.... क्वी बच्यंदरा नि रैंदा जणि यख!!"😊
#Sunitadhyani
1 टिप्पणियाँ
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