माया
काश! ये माया न होती
न धन होता न दौलत होती।
जी लेते थे जैसे पहले हम
वैसी ही अपनी ज़िन्दगी होती है।
अन्न के बदले अन्न दूध के बदले दूध मिलता
हर कोई इक दूजे के काम आता।
एक गांव होता हर किसी से कुछ रिश्ता होता
यू भीड़ में रिश्तों को खोजना न पड़ता।
आज न मेरा गाँव सुनसान वीरान होता
शहरो की चोट से न मेरा गाँव लहूलुहान होता।
न कोई बीमारी होती न कोई बीमार होता
जो अगर मैं चैन से दो पल भी सो लेता।
काश! कि रास्ते शहर को न आये होते
मेरे गाँव के हालात भी खुशहाल होते।
कहूँ क्या ऐ "खुदेड़"! काश तेरी भी कोई सुन लेते
कभी कभी ही सही लेकिन अपने गाँव की सुध ले लेते।
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339
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