मिलेंगें, जरूर मिलेंगे, बार बार मिलेंगे।
सिग्नल की डिम लाईट के नीचे सिग्नल ग्रीन होते तक,
मेरी बाईक के समानान्तर तुम अपनी बाइक पर खड़े हो जाना।
मैं तुम्हें स्तब्ध सी देखूंगी और तुम धीरे से मुस्कुरा देना।
कभी रास्ते पर पीछा करती नजरें महसूस हो,या
आवारा झोंका शरारत करते आसपास मंडराए समझ लेना हम मिल रहे हैं।
कभी बारिश की बूंदें बनकर मेरे बदन से लिपट जाना,
कभी बदली बनकर मैं तुम्हें ढक लूंगी।
कभी शांत बैठे एक दूसरे के कंधे पर सर रखकर,
मैं खुद में तुम्हें और तुम खुद में मुझे ढूंढते हुए मिलेंगे।
बार बार मिलेंगे.....
एक दूसरे को सोचने की बैचैनी जब गालों पर लुड़क आए,
स्वयं के प्रश्न और प्रश्नों के स्वयं के उत्तर में साकार होने हो मन,
एक दूसरे को सहेजते,संवारते,श्रद्धा से सर झुकाते, प्रार्थनाओं में।
बार बार मिलेंगे...
कभी नाचती धूप की चिचिलती झाइयों में,
कभी ठंड के छुअन से तृप्त प्रेमातिरेक्ता
में नश्वर संसार की अनश्वरता में जन्मों के बंधन से मुक्त।
बार बार मिलेंगे, जरूर मिलेंगे।
अनुराधा बक्शी "अनु"( एडवोकेट)
दुर्ग
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