कठपुतली का खेल
(१)
गेह सदा ही हो सुखी,
अधर रहे नित हास ।
भक्ति भावना से बनें ,
शिव चरणों के दास ।।
शिव चरणों के दास,
उछास भरा हो मन में ।
हो आपका निवास,
सदा ही सुख के वन में ।।
कह सागर कविराय,
मिले शुभ,नेह सदा ही ।
मंदिर सा हो सुखद,
सुवासित गेह सदा ही ।।
(२)
रसना में वाणी मधुर,
कर में हो उपकार ।
तब मिलती है सम्पदा,
होती जय-जयकार ।।
होती जय-जयकार,
सुखी होता है जीवन ।
जाती रिपुता छोड़,
मीत बन जाता जन-जन ।।
कह सागर कविराय,
रखो मन शुभ वसना में ।
रखना मधु का घोल,
सदा ही तुम रसना में ।।
(३)
चार दिनों की चाँदनी,
रखियो सबसे मेल ।
डोर किसी के हाथ में,
कठपुतली का खेल ।।
कठपुतली का खेल,
साँस भी कब है तेरी ।
कहता फिरता सदा,
जगत में मेरा-मेरी ।।
कह सागर कविराय,
बात है पलों-छिनों की ।
यात्रा अपनी जान,
जगत में चार दिनों की ।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव चरणों के दास ।।
शिव चरणों के दास,
उछास भरा हो मन में ।
हो आपका निवास,
सदा ही सुख के वन में ।।
कह सागर कविराय,
मिले शुभ,नेह सदा ही ।
मंदिर सा हो सुखद,
सुवासित गेह सदा ही ।।
(२)
रसना में वाणी मधुर,
कर में हो उपकार ।
तब मिलती है सम्पदा,
होती जय-जयकार ।।
होती जय-जयकार,
सुखी होता है जीवन ।
जाती रिपुता छोड़,
मीत बन जाता जन-जन ।।
कह सागर कविराय,
रखो मन शुभ वसना में ।
रखना मधु का घोल,
सदा ही तुम रसना में ।।
(३)
चार दिनों की चाँदनी,
रखियो सबसे मेल ।
डोर किसी के हाथ में,
कठपुतली का खेल ।।
कठपुतली का खेल,
साँस भी कब है तेरी ।
कहता फिरता सदा,
जगत में मेरा-मेरी ।।
कह सागर कविराय,
बात है पलों-छिनों की ।
यात्रा अपनी जान,
जगत में चार दिनों की ।।
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