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Stinning Nettle part-2कण्डली भाग -2

कंडली stinning Nettle part-2
काफी समय पहले मैं आज के इस वानस्पतिक लेख लिख चुका हूं उस वक़्त अधिक जानकारी नही थी किन्तु अब इसके बारे में काफी कुछ जान चुके हूं तो सोचा क्यों ना आप सभी के साथ भी इस जानकारी को सांझ किया जाए। पिछले लेख के लिए यहाँ क्लिक करे आज का मेरा लेख Stinning Nettle इस नाम से जो वाकिफ़ होंगे उनके शरीर मे रोंगटे जरूर खड़े हो गए होंगे। आखिर होंगे क्यो नही जो नाम जानते है शायद उनमे से बहुत से ऐसे भी होंगे जिन्होंने इसके असर को अनुभव भी जरूर किया होगा। अभी असर नही हुआ लो अब आपको एहसास दिलाते है, इसका नाम अलग अलग जगह अलग अलग है। उत्तराखण्ड में इसे कण्डली या या शिशोण के नाम से जाना जाता है हिमाचल नेपाल में इसे बिच्छू घास के नाम से जाना जाता है। अब हुआ असर अब जरूर असर हुआ होगा। विज्ञान की भाषा मे कण्डली को Urtica Deoica के नाम से जाना जाता है और यह Urticacae प्रजाति का पौधा है।
बात की जाए यदि इसकी खेती की तो भारत मे कही भी इसकी खेती नही की जाती है बल्कि यह बंजर जमीन या खेतो के किनारे रास्तो में स्वतः ही पैदा हो जाती है। जबकि यदि मैं बात करु इसकी व्ययसायिक खेती की तो विश्वभर में इसकी खूब व्यावसायिक खेती की जाती है और इससे दवाई चाय एको फैब्रिक बनाया जाता है। और ये व्यवसायिक खेती अब से नही बल्कि वर्षो से की जाती है विश्व मे।
कण्डली है हमारे लिए लाभकारी
इसमे विटामिन A, C आयरन, मैग्नीज़, पोटैशियम, कैल्शियम अच्छी मात्रा में पाए जाते है। इसमें लगभग 16 एमिनो अम्ल भी पाए जाते है। कण्डली हृदय रोग, किडनी रोग, तथा UTI के उपचार में सहायक है। इसमें carboxylic acid व Formic Acid होता है जिस कारण इसका उपयोग कीटनाशक के रूप में भी किया जाता है। इसके छोटे छोटे कांटो में हिस्टामिन होता है जिस वजह से जब ये हमारे शरीर के संपर्क में आता है तो जिस जगह लगता है वहा पर एक अजीब तरह की जलन पैदा कर देता है।
कण्डली में प्रति 100 ग्राम
वसा 5.2 ग्राम, प्रोटीन 28.5 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 47.4 ग्राम, कैल्शियम 113 ग्राम, तथा पोटैशियम 917.2 ग्राम तक पाये जाते है।
कण्डली के ऊपरी भाग में 6 प्रकार के तत्व पाए जाते है इनमे है:-
Cafferic Acid
Rutin
Quercetin
Hyperin
Isoquercitin
Beta-Sitosterol
इसमे विटामिन A, C व D के साथ प्रोटीन 21 से 23 प्रतिशत, फाइबर 9 से 21 प्रतिशत, कैरोटीन 50 माइक्रो ग्राम/ ग्राम, Ribolloflavin 4 माइक्रो ग्राम/ग्राम, विटामिन E 10 माइक्रो ग्राम/ग्राम तक पाये जाते है।
आद्योगिक रूप से कण्डली फाइबर व क्लोरोफिल का मुख्य स्रोत है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय से ही यूरोप में कण्डली का उत्पादन किया जाता रहा है। खास तौर पर इसे फाइबर प्लांट के रूप में उगाया जाता रहा है। 1940 में जर्मन और ऑस्ट्रिया में भी लगभग 500 हेक्टेयर भूमि में कण्डली का उत्पादन शुरू किया गया था।
कण्डली का यदि भारत मे भी व्यवसायिक खेती के रूप में उत्पादन किया जाए तो अच्छे परिणाम मिलेंगे। क्योकि इसका उपयोग सब्जी के अलावा, दवाइयों में फाइबर के रूप में विश्वभर में किया जा रहा है। प्रदेश में आर्थिकी के लिए बेहतर परिणाम हमे कण्डली से मिल सकते है। काफी आसानी से होने वाली कण्डली पर विश्व मे काफी कंपनी शोध संस्थानो के साथ मिलकर उच्च कोटि कण्डली के उत्पादन पर जोर दे रही है।
FinFlax Ltd ने Agriculture Research Centre of Finland, तथा Institute of Agri biotechnology, Austria, Institute of Applied Research, Germany, Institute of Plant Production and breeding Switzerland व कई और वैज्ञानिक शोध संस्थानों द्वारा Developing of cultivation methods, fiber processing, Mechanical fiber processing, production of knitted Clothes पर शोध कार्य किये गए है।
Ramie सिल्क फाइबर कण्डली से ही तैयार किया गया है। यूरोप के देशों में कण्डली कई चाय को मूल रूप से उपयोग में लाया जाता है। इसकी जड़ो का प्रयोग Benign Prostatic Hyperplasia के उपचार में किया जाता है। Healthy Prostate व Normal Urinary flow के लिए Nettle root कैप्सूल बाजार में उपलब्ध है।
जर्मन कमीशन ने urinary इंफेक्शन के लिए कण्डली की पत्तियों से उपचार के लिए मान्यता दी है।
चलते चलते बताते चले कि विश्व मे ईको फाइबर की मांग काफी अधिक बढ़ रही है, इसी के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्राकृतिक फाइबर का लक्ष्य 2020 तक 74.65 बिलियन अमेरिकी डॉलर रखा गया है।
आपको यह जानकारी कैसी लगी अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे दोस्तो आपकी प्रतिक्रियाएं ही लिखने का हौसला देती है।
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अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339

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1 टिप्पणियाँ

  1. आपके आपके द्वारा बताई गई इस जानकारी से हमें बहुत कुछ सीखने को मिला और पता चला कि जिस कंडाले को हम सिर्फ बच्चों को डराने मैं इस्तेमाल करते थे उसका इतना बड़ा महत्व हमारे जीवन पर होता है

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