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87th birth anniversary Of Late Shri Kanhaiyalal Dandriyar महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी की 87वीं जयंती

87 वीं जयंती परैं विशेष.
सीधा अर सरल सुभौ का मनखि छया महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल.
दिनेश ध्यानी।
महाकवि कन्हैयालाल डंड़रियाल गढ़वाळी भाषा का विरला साहित्यकारों म छया जौंन अपणि रोजी-रोजगार से भी बिण्ड्या महत्व अपणि भाषा, साहित्य सेवा तैं देन। आजीवन आप नांगा खुटोंन यीं धर्ती तैं नपणां रंयान अर हिमाल से भी उच्च साहित्य सृजन करणां रंयान। जिन्दगी का अत्यडा-भत्यडा बि आपै कलम तैं नि डिगै साका। परिवार जनि बि रै होलु खैरि अखरि म पण आपन साहित्य सेवा तैं लगातार जारी राखी। दिल्ली जनु निठुरू शहर म आपन रोजगार से ल्हेकि चा पत्ति बि बेचिन पण अपणि सोच अर साहित्य सेवा से कभी समझौता नि कैरि। या बात आप तैं कन्हैंयालाल डंडरियाल बणौंद।
आपौ जाणा बाद आपकु परिवार तैं तब लागि कि आपन अपणु जीवन म समाज अर साहित्य खुणि कतना बडु योगदान दियों चा जब वर्ष 2012 म उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंचन आपका नौ से साहित्य सम्मान शुरू कैरि। पैलु आयोजन म आपौं परिवार बि शामिल छौ वै भव्य आयोजन का बाद आपौ बडु बेटा श्रीकृष्ण डंडरियाल न बतै कि हमुतैं अमणि लागि कि हमरू बुबा जीन समाज अर साहित्य म अपणु नौ कमै अर हमतैं वों परैं गर्व ता पैलि बि छौ पण एक बुबा होणा नाते कुछ शिकायत बि छै कि हमुतैं भौत यना मौका ऐन कि कुसज भी ह्वै अर वोंकि धुन देखिकि गुस्सा भी औंदु छौ। कै दौं पिताजी बिना बतंया घौर बिटिन सटगि जांदा छया। अर हफ्ता हफ्ता घौर नि औंदा छया। वै जमना म न फोन होंदा छया न क्वी साधन। मां हफ्ता द्वी हफ्ता बाद बुल्दी छै कि खोज कैरा, जाण पछ्याण वळों को घौर जावा अर जब पन्द्रह दिन से भिण्ड्या ह्वै जांदा छया ता फिर मां बुल्दी छै कि अरै छ्वाराओं अक्वै खोज कैरा अमणि पन्द्रा दिन से बिण्ड्या ह्वैगेन बुढ्या तैं घौर बिटिन गंया अमणि तलक का तेरवीं बि ह्वैजाणि छै। अर पिताजी फिर चुपचाप घौर ऐ जांदा छया।
डीपीएमआई इन्स्टीट्यूट का चेयरमैंन डाॅ बिनोद बछेती जी न बतै कि एक दौं शायद जूना मैना बात हो जब वोंकि स्कूलों कि गर्मियों की छुट्टि छै हुयीं। वों को परिवार सरोजनी नगर म रैंदु छौ अर वो स्कूल म पढ़दा छया ता दिन म छुट्टि को दिन छौ। हम सब्बि खाणु खाण लग्यां छया ता दरवजा घंटि बजी। मेरा पिताजी न बोलि कि दरवाजु खोलि धौं यीं द्वफरा म को होलु अयों। बछैती जीन बोलि जब मिन दरवाजु खोलि ता देखि समणि एक बुढ्या सि छौ खडु। बड़ि-बड़ि दाढि अर कुर्ता सुलार पैर्यां। हत्था परैं एक झोळा सि अर नांगा खुटौं को चडचडु घाम म खडु छौ। मिन बोलि किसको मिलना है ता बैन बोलि कि बछेती जी को मिलना है। बछेती जीन अगनै बतै कि मि भितर अयों अर बुबा जी खुणि बोलि कि भैर एक भिखारी चा अयों अर वो बुनौं कि मि बछेती जी तैं मिलणों अयों छौं। बछैती जी का बुबा जीन बोलि भिखारी अर म्यारू नौ ल्हेणों देखदु छौं को होलु। जब वो दरवाजा परैं अयंा ता देखि कि महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी खड़ा छया। डंडरियाल जी तैं देखिकि सीनियर बछेती जीन वों का खुटा छ्वीं अर वों तैं भितनै बैठ्वाग म ल्हेन अर बच्चों तैं बोलि कि झट खैकि इनां आवा देखा धौं हमरा घौर को अयों।
सौब बच्चा कमरा म ऐन ता बछेती जीन बोलि अरे बेटा बिनोद जौं तैं तु भिखारी समझणों छै ना सि छन महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल। गढ़वाळी भाषा साहित्या का साहित्य शिरोमणी छन। तब जैकि सौब बच्चों न डंडरियाल जी का खुटा छुयींन।
इतगा सीधा अर आम सुभौ का मनखि छया महाकवि डंडरियाल जी।
वों को बडु बेटान बतै कि एक दौं पिताजी द्वफरा म कखि बिटिन घौर औणां छया। रस्ता म वों तैं तीन साधु मिलीन। वोंन बोलि कि बाबा भूखा छंवा हमतैं खाणु खिलै द्या। डंडरियाल जीन बोलि चला हमरू घौर यीं ही काॅलोनी म चा, घौर म खाणु खलै द्योंलु। अर वो वों तैं ल्हेकि ऐगेन घौर। घौर म परिवारा खातिर खाणु बण्यो छौ। वोंन अपणि घरवळि म बोलि कि भैने जो तीन साधु खड़ा छन सि भूखा छन। मि यों तैं खाणु खिलाणा लयों छौं। वोंकि पत्नी न बोलि कि मिन ता परिवारा खातिर खाणु बणयों तुम कतना दानि छंवा रस्ता म ज्वी मिल्दा वै तैं घौर ल्है अंदौ। डंडरियाल जी न बोलि कि अब ह्वैगे जो ह्वैगे अब घौर अयां मैमानों तैं भोजन कराण। वोंकि पत्नी पड़ोस म बिटिन तीन थकुला मांगिकि ल्हेऐन अर वों थकुलोंवांद तिन्यों तैं खाणु परोसि। खाणु खाणा बाद जब डंडरियाल जी न बोंका हाथ धुलवेन ता वों जोग्योंन बोलि कि बाबा हम यो थकुलौं तैं अफु दगड़ि ल्ही जंदौ। डंडरियाल जी न बोलि ल्ही जावा। पैलि मि यों तैं छलै देंदुं अर वो थकुलौं तैं छळ्याण बैठिगैन। डंडरियाल जी की पत्नी न बोलि स्यु क्या करणां छंवा ता वोंन बोलि यि थकुल बल यों तैं चैणां छन ता ध्वैकि देणों छौ।
वों कि पत्नी न बोलि कि भितनै मैमानों तै खाणु खिलाणु जुगा थकुला नि छन मि पड़ोस म बिटिन लयों छौं मांगिकि। यों जोग्यों का कटुड़ा यों थकुलों तैं तनि धैरि द्या नि देणां यों तैं। पडा़ेसी मांगला ता कख बिटिन देला। तब जैकि डंडरियाल जीन वों जोग्यों तैं बोलि कि अज्यों त ना पण कबि देखला।
डंडरियाल जी का नौना न बतै कि पिताजी इतगा सीधा सुभौ का मनखि छया कि बिरला मिल म नौकरि कर्दा छया। सुबेरा शिफ्ट म ड्यूटि छै। गरमियों म सुबेर घौर बिटिन कुर्ता अर कपड़ा का बड़ा-बड़ा निकर सिलयां रैंदा छाया वों पैरिकि हि पैदल चलि जांदा छया मिल म। दिन म जब शिफ्ट खतम होंदु छौ ता फिर पैजामा पैरिकि ऐ जांदा छया। ऐक दिन सुबेर तार म बिण्डि कपड़ा टंक्या छया। वों न ऐ पैजाम कंधा वोंद धैरि अर सटिगि गैन मिल म काम परैं। दिन म जब शिफ्ट खतम ह्वै ता वोंन जनि पैजामा पैरणों छो ता देखि कि वो ता जनानु पैजामा तैं ल्है गे छया ड्यूटी म। तब वों पैजामों तैं तन्नि कांधावोंद धैरिकि अर ऐगेन। घौर ऐकि हम सब्योंन देखि कि भुली का सुलार ल्हेगे छया अपणां सुलार बोलिकि कि ता हम सौब भै-बैणां खूब हैंसा।
बिरला मिल म पैलि ता सौब कुछ ठीक चलणों रैं। मनेजर भी डंडरियाल जी की खूब इज्जत कर्दु छौ कि विद्वान मनखि छन। कभी कभार कवि सम्मेलनों म जाणां खातिर छुट्टि भी दे देंदु छौ। पण जब वेन देखि कि मैना पन्द्रा दिन म डंडरियाल जी छुट्टी करणां छन अर वोंका देखा देखी हौरि वर्कर भी छुट्टी करणांन ता वैन एक दिन डंडरियाल जी तैं बुलै अर बोलि कि बाबा तुमरू बगत-बगत छुट्टी करण से हौरि कर्मचारी भी बिदकणां छन अर फैक्टरी को काम भी हर्जा हूणों। अब मेरा बसा नी हौरि सैणु। मि तैं भी अगनै जवाब देण प्वडदा। अब यनु कारा कि तुम कवि सम्मेलन अर मिला नौकरी म बिटिन एक तैं चुनि ल्या। यनु अब अगनै नि चलि सकदु। काम करणां ता अक्वै कारा अर नि करणां ता तुमरि मर्जी। बुल्दन कि डंडरियाल जीन वै तैं तुरन्त बोलि कि मेरू हिसाब कैरि द्या ।
डंडरियाल जी की बात सूणिकि वो मैनेजर भी चुप ह्वेगे। वैन बोलि बाबा सोचि ल्या। घौर जावा अर आराम से सोच्यां। तुमरि कच्चि कुटमदारी चा। परदेश म छवा गुजरू कनम होलु। अमणि तलक मिल तभी तुम तैं सहयोग कैरि पण अगनै मेरि बस से भैर होणीं बात। हैंका दिन डंडरियाल जीन मिल की नौकरि बिटिन इस्तिफा दे देन अर घौर म बैठिगेन। हैंका दिन जब वो ड्यूटि नि गयां ता बच्चों न पूछि कि क्या बात चा तबियत ठीक चा तुमरि अमणि ड्यूटि किलै नि गयां ता डंडरियाल जीन बोलि कि मिन नौकरि छोडियालि। सूणिकै सौब खौळ्यां रैंगेन। कतनै मनौणां जतन कैरि पण वोंन बोलि कि मि लेखन अर कवि सम्मेलन नि छोड़ि सकदु।
सोचा वै जमना म कच्चि कुटमदारी अर परदेश म किराया का कमरों परैं रैंण वळु मनखि छ क्वी जो यनु फैसला ल्यालु? लोगोंन त पागल हि बतौंण। लेकिन जुनून अर भितनैं तलक जै मनखि की आत्मा म साहित्य सेवा रचींबसीं हो वो हौरि क्वी न महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल ही ह्वै सकदन।
त इना छया सीधा अर सरल सुभौ का मनखि छया महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी। आपौ जन्म 11 नवम्बर, 1933 खुणि जिला पौड़ी गढ़वाल को नैली गांव, पट्टी मवालस्यूं मा ह्वै। 20 साल की आयु मा रोजी र्वजगार की खातिर गौं बिटे दिल्ली एै गेन। दिल्ली म बिरला मिल म काम करि पण सन 1982 म अचणचक मिल बंद ह्वैगे अर फिर वौं थैं आजीविका चलौणां खातिर चा पत्ती बेचणां काम शुरू करण पोड़ि।
मां शारदा के वरद पुत्र श्री डंडरियाल जी थैं परिवार एवं रोजगार की जतना फिकर छै वां से बि भिण्डया साहित्य सृजन की धुन रैंदि छै। यी कारण छौ कि कै दफा रोजगार पर बि यांकु फरक पोड़ि पण श्री डंडरियाल जी न कभी भी अपणी लेखनी से समझौता नी करि, अर् हर परस्थिति वो लगातार लिखणां रैंन।
स्वभाव से साधारण सि दिखेण वळ श्री डंडरियाल जी असल में विलक्षण प्रतिभावान ऋर्षि तुल्य छाया। वोंन अपणु जीवन साधिकि अर कम से कम साधनौं मां बि समाज की भलै म पूरू जीवन लगै, वोंकि साहित्य साधना यां कु प्रत्यक्ष उदाहरण चा।
जब हम श्री डंडरियाल जी को रचना संसार पर नजर डळदां त पंदा कि वों न डेढ दर्जन से बि भिण्डी गढ़वलि का रचना संग्रह जैमा कविता, गीत, कहानी, नाटक, एकांकी आदि लिखिन यां का अतिरिक्त गढ़वाली शब्द कोश जो कि अज्यों तक अप्रकाशित चा, वै कि रचना कैरि कि श्री डंडरियाल जी न गढ़भारती का खुचिला अमूल्य निधि सौंपी चा। श्री डंडरियाल जी की मुख्य प्रकाशित रचनाओं मा- मंगतू खण्ड काब्य 1960, अंज्वाळ कविता संग्रह प्रथम संस्करण, 1978 और द्वितीय संस्करण, 2004, कुयेड़ी गीत संग्रह 1990, नागरजा महाकाव्य, भाग एक 1993, भाग दो 1999 और नागरजा भाग तीन और चार 2009, चांठौं का घ्वीड़ यात्रा बृतांत, 1998, सहित कै अद्वितीय साहित्यिक कृतियां रचिकि श्री ड़ंड़रियाल जी न गढ़ साहित्य मंदिर थैं अनुपम भेंट प्रदान कर्यी छन।
यां का अतिरिक्त श्री ड़ंडरियाल जी की कतनैं अप्रकाशित रचना छन, जो आज भी प्रकाशन की बाट दिखणीं छन। वां म - बागी उप्पनै लड़ै, खण्डकाब्य, उडणीं गण, खण्डकाव्य, कंसानुक्रम नाटक, स्वंयबर नाटक, मंचित, भ्वींचल, नाटक मंचित, अबेर च अंधेर नी नाटक, अर सैकड़ों गढ़वाली कवितायें आदि छन। गढ़वाली का शब्द कोश श्री डं़डरियाल जी को अप्रकाशित रचनौं म बिटै मुख्य चा।
महाकवि डंडरियाल जी को रूद्री उपन्यास को प्रकाशन युवा कवि भुला श्री आशीष सुन्दरियाल का सद्प्रयासों से पिछला साल छपेगे। हौरि भी अप्रकाशित रचनाओं तैं छपणां वास्ता प्रयास जारी छन।
महाकवि डंडरियाल जी थैं वोंकी साहित्य सेवा का वास्ता समय-समय पर जो सम्मान मिलि वों म प्रमुख छन।
1. गढभारती पुरस्कार द्वारा गढ़भारती साहित्य मंडल, दिल्ली, सन् 1972
2. पं. टीकाराम गौड़ पुरस्कार- गढ़भारती दिल्ली, सन् 1984
3. ड़ाॅ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल नामित पुरस्कार- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान - सन 1990
4. पं. आदित्यराम नवानी गढ़वाली भाषा प्रोत्साहन पुरस्कार - गढ़वाली साहित्य परिषद, कानपुर, सन् 1991
5. गढ़-रत्न पुरस्कार- गढवाल भ्रातृ परिषद, मुम्बई- सन् 1994
6. जयश्री सम्मान- जयश्री सम्मान ट्रस्ट, देहरादून, उत्तराखण्ड
7. उत्तराखण्ड गौरव- गंगोत्री सामाजिक संस्था, दिल्ली
8. साहित्य शिरोमणि सम्मान- ;मरणोपरान्तद्ध- उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच, दिल्ली- 2004
यांका अतरिक्त बि समय-समय परैं डंडरियाल जी तैं कै संस्थाओंन सम्मानित कैरि। असल बात या चा कि जो कार्य श्री डंडरियाल जी न साहित्य सेवा म कर्यों चा, जो भाव और मानवीय संवेदना वों का गीतों म मिल्दा वै कि कल्पना डंडरियाल जी जना विशद दृष्टि अर जन जीवन का प्रति दयाभाव अर जीवन की विभिन्न संगतियों अर विसंगतियों की अनुभूति समझण वळु मर्मज्ञ ही कैरि सकदा। गढ़भारती का वरद पुत्र श्री डंडरियाल जी साहित्य सेवा कर्दा कर्दा अचणचक 2 जून, 2004 खुणि हमसे ये वादा का साथ गोलोकवासी ह्वै गैन कि हम वों कि विशद विरासत थैं संज्वैकि अर संभाळिकि रखला।
श्री डंडरियाल जीन अपणी रचनाओं म अपणु गौं से ल्हेकि दिल्ली जन्नु सैर म हमारि मनखि कि सोच, विचार अर दशा, दिशा अर मानवीय संवेदनाओं थैं भौत संजीदगी से उकेर्यों चा। चांठों का घ्वीड़ यात्रा वृतान्त यी परिभाषा परैं सतप्रतिशत खरू उतरदा। निःसंकोच डंडरियाल जी जना साहित्य शिल्पी सदियों मा कभी कभार ही जन्म ल्हेंदन।
मां सरस्वती का इन्ना वरद पुत्र का नौं से वर्ष 2012 बिटिन वांे का नौं से साहित्य सम्मान की परम्परा शुरू कैरिकि उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच, दिल्ली का द्वारा दिल्ली पैरामेडीकल एण्ड मैनेजमेंट इन्स्टीट्यूट, का चेयरमैन डाॅ बिनोद बछेती जी का सहयोग से गढ़वाली भाषा साहित्य का संबर्द्धन, संरक्षण का क्षेत्र में नै पहल शुरू कैरि। य पहल गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी, रंवाल्टी भाषा साहित्य खुणि शुभ चा अर अमणि अर उम्मीद चा कि गढ़वळि का ल्ख्वारौं थैं यां से प्रेरणा मीललि।
2012 बिटिन लगातार उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच महाकवि कन्हैयालाल साहित्य, समाजसेवा, पत्रकारिता आदि का क्षेत्र म सम्मान देणों अर वर्ष 2016 बिटिन गर्मियों की छुट्यों म दिल्ली एनसीआर अर उत्तराखण्ड म बि गढ़वाळी, कुमाउनी भाषा शिक्षण कक्षाओं को आयोजन बि करणों चा। पिछला साल 2019 म दिल्ली एनसीआर म 32 जगा कक्षाओं को आयोजन कैरि अर श्रीनगर गढवाळ म भि मंचन गढ़वाळी भाषा शिक्षण कक्षाओं को आयोजन कैरि।
अमणि महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी की 87वीं जयन्ती परैं उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंचा तरपां बिटिन अपणि श्रद्धाॅसुमन अर्पित कर्दां अर उम्मीद कर्दां कि अगनै भी मंच का माध्यम से आपका बतयां बाटों म हिटणां कोशिश यन्नि करणां रौंला।
उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच, दिल्ली।

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1 टिप्पणियाँ

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