1
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बस मुझे बेवफा कह दीजिये मर जाउंगी
सामने सबके हकीकत भी नहीं आयेगी
बस मुझे बेवफा कह दीजिये मर जाउंगी
तुम पर क़त्ल की तौमत भी नहीं आयेगी
हाल क्या दिल का है इज़हार से रौशन होगा
यानी किरदार तो किरदार से रौशन होगा
रात दिन आप चरागों को जलाते क्यों है
घर चरागों से नहीं प्यार से रौशन होगा
तु किसी रस्ते का मुसाफिर रह
तेरी एक एक ठोकर उठा लाऊँगी
अपनी बेचैन पलकों से चुन चुनके मैं
तेरे रस्ते के पत्थर उठा लाऊँगी
मैं बरत प्यार का मोड़ सकती नहीं
ज़िन्दगी में मई तुझे छोड़ सकती नहीं
तू अगर मेरे घर टॉक नहीं आयेगा
मैं तेरे पास ही घर उठा लाऊँगी
मेरे हर ख्वाब की तू ताबीर है
तू ही मेरे खयालो की तश्वीर है
तेरी आँखों से देखूंगी मैं ज़िन्दगी
तेरी पलकों से मंज़र उठा लाऊँगी
ये ज़माना है सूखी नदी की तरह
चंद आंसू भी इसे न मिल पाएंगे
देख तो मुझसे कहकर किसी रोज़ तू
तेरे खातिर समंदर उठा लाऊँगी
तेरे माथे की एक एक शिकन की कसम
मैं आयाद-ऐ को रसमल नहीं आई हूँ
मेरे बीमार तेरी दवा के लिए
अपना एक एक जेवर उठा लाऊँगी
तु किसी रस्ते का मुसाफिर रह
तेरी एक एक ठोकर उठा लाऊँगी
2
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खामोश लब है झुकी है पलके
दिलो में उल्फत नई नई है
अभी तक्क्लुफ है ग्गुफ्त्गू है
अभी मोहोब्बत नई नई है
खामोश लब है झुकी है पलके
दिलो में उल्फत नई नई है
अभी अभी न आयेगी नींद तुमको
अभी न हमको सकूँ मिलेगा
अभी तो धड़केगा दिल ज्यादा
अभी ये चाहत नई है
खामोश लब है झुकी है पलके
दिलो में उल्फत नई नई है
बहार का आज पहला दिन है
चलो चमन में टहलके आए
फ़सान में खुशबु नई नई है
गुलो में रंगत नई नई है
खामोश लब है झुकी है पलके
दिलो में उल्फत नई नई है
जो खानदानी रईस है
मिजाज़ रखते है नर्म अपना
तुम्हारा लहजा बता रहा है
तुम्हारी दौलत नई नई है
खामोश लब है झुकी है पलके
दिलो में उल्फत नई नई है
ज़रा सा कुदरत ने क्या नवाज़ा
कि आके बैठे हो पहली सब में
अभी से उड़ने लगे हो हवा में
अभी तो शौहरत नई नई है
खामोश लब है झुकी है पलके
दिलो में उल्फत नई नई है
अभी मैं कैसे कहू "शबीना"
वफ़ा निभाएंगे वो हमेशा
कि मेरे दिल की ज़मीं पर उनकी
अभी हुकूमत नई नई है
3
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लौट आओ भुलाकर खाताये मेरी
राह में दिल बिछा दूँ अगर तुम कहो
आई दीपावली सज गई हर गली
मैं भी घर को सजा दू अगर तुम कहो
लौट आओ भुलाकर खाताये मेरी
जंग से मुल्क जीते गए है सदा
प्यार से जित लेता है दिल आदमी
ये तुम्हारी निगाहों में नफरत है जो
इसको चाहत बना दू अगर तुम कहो
लौट आओ भुलाकर खाताये मेरी
क्या कहा ये अँधेरे न मिट पाएंगे
क्या कहा रौशनी अब न हो पायेगी
देके दिल का उजाला चरागों मैं
रात को दिन बना दू अगर तुम कहो
लौट आओ भुलाकर खाताये मेरी
वो ज़ुनू क्या हुआ वो वफ़ा क्या हुई
अब तो चूड़ी भी लाने की भी फुरसत नही
की मोहोब्बत से कल तक ये कहते थे तुम
की चाँद तारे भी ला दू अगर तुम कहो
लौट आओ भुलाकर खाताये मेरी
दुसरो को बुरा कहने वालो सुनो
ख़ुद को भी एक नज़र देख लो
अपने भी ऐब तुमको नज़र आयेंगे
आईना मैं दिखा दू अगर तुम कहो
सब यहाँ पर है अपने पराये नहीं
और अपनों से बाते छुपाते नहीं
ज़िक्र जिसमे तुम्हारी ज़फाहो(बेवफाई)का है
वो ग़ज़ल भी सुना दो अगर तुम कहो
शबीना
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