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Swaroop Dhondiyal स्वरुप ढौंडियाल


अलकनंदा के संस्थापक संपादक स्वरूप ढौंडियाल को याद करने का मतलब एक ऐसी धारा को याद करना है जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक रंगमंचीय और मानवीय संवेदनाओं का प्रभाव है। स्वरूप जी का समाज के साथ वैसा ही संबंध था जैसा हिमालय के साथ अलकनंदा का। दोनों एक दूसरे के पूरक है एक निर्माणकर्ता है दूसरा उसकी जनपक्षीय धारा बनकर मानवता के कल्याण के लिए निकलती है। जब हम अलकनंदा या उस जैसी नदी की कल्पना करते हैं, तो हमारे मन में एक बात होती है सोच के व्यापक फलक की। उसी तरह जिस तरह हिमालय जितना ऊंचा होता है उतना ही गहरा भी, उसमें आत्मसात करने की शक्ति है संघर्षों से आगे बढ़ने की जिजीविषा और संकल्प भी। छोटा बड़ा कुछ नहीं, अंदर बाहर का तो सवाल ही नहीं, तेरा मेरा तो छू भी नहीं सकता, जिस तरफ निकले अपने ही मिले। चेहरे पर ढृढ़ मुस्कान अधिक हौसले हम हिमालय से पाते हैं, उसकी धाराओं में पाते हैं। 
फैलाव का दर्शन हिमालय की अवधारणा को आत्मसात कर विचार की अलकनंदा प्रवाहित करने वाले व्यक्ति का नाम था स्वरूप ढौंडियाल असली हिमालय पुत्र।  उनको याद करने का मतलब है उत्तराखंड की सामाजिक और साहित्यक यात्रा के एक युवक को याद करना। स्वरूप ढौंडियाल साठ के दशक में कहानी आंदोलन के दौर के उन रचनाकारों में से हैं जिनका साहित्यिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है।  27 सितंबर 1935 को ग्राम ढोंड, पट्टी ढौंडियालस्यूं, जिला पौड़ी गढ़वाल में जन्मे स्वरूप ढौंडियाल की पहली कहानी 1958 में उस समय की चर्चित पत्रिका मनोहर कहानी में प्रकाशित हुई थी। भारत की प्रमुख हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में उनकी लगभग 300 कहानियां प्रकाशित हुई। उनकी दो कहानी संग्रह नाम काट दो और मैं क्यों नहीं हूं? कई कहानियों का गुजराती मराठी में अनुवाद हुआ। आकाशवाणी से उनके कई नाटकों का प्रसारण हुआ उनका उपन्यास बूंद बूंद पानी का धारावाहिक के रूप में अलकनंदा में प्रकाशन हुआ। उनके दो उपन्यास छूटा हुआ किनारा और लौटा हुआ सिद्धार्थ प्रकाशन आधीन है। उन्होंने पर्यावरण पर कई डॉक्यूमेंट्री का लेखन और निर्माण भी किया। स्वरूप ढौंडियाल की दो चर्चित पुस्तक अदालत और मंगतू बौल्या देश के कई कई शहरों में मंचित किए गए। उत्तर प्रदेश सरकार ने इन नाटकों को पुरस्कृत भी किया। 
इसके बाद 1972 में अलकनंदा का प्रकाशन किया। इस पत्रिका ने कई नवोदित लेखकों को मंच प्रदान किया। उन्होंने 1986 तक भारत सरकार की नौकरी की। स्वरूप ढौंडियाल को इस बात के लिए विशेष रूप से याद किया जाएगा कि उन्होंने पहाड़ के लोगों को एक सूत्र में बांधने के लिए भगीरथ प्रयास किया। एक समय में जब संचार के साधन नहीं थे उन्होंने घर-घर जाकर पहाड़ के लोगों के बारे में जानकारी ली और दिल्ली एक मिनी उत्तराखण्ड नाम से 4 चार खण्डो में एक निर्देशिका निकाली उस समय यह निर्देशिका पहाड़ के लोगों को जानने समझने का ज्ञान कोष था। ऐसा ही प्रयास उन्होंने मुंबई में किया वहां के प्रवासियों के लिए शिखरों के स्वर सागर के तट निर्देशिका प्रकाशित कर  लोगों को जानने समझने का मंच दिया। स्वरूप ढौंडियाल ने अपना पूरा जीवन जन सरोकारों के साथ जिया। एक विनम्र स्वाभिमानी दृढ़ निश्चयी मानवीय संवेदनाओं से भरपूर व्यक्तित्व को याद करते हुए हमें नई ऊर्जा मिलती है। 15 जुलाई 2002 को उनका देहावसान हो गया था। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि उनकी प्रवाहित अलकनंदा यूं ही बहती रहे.....  
यही संकल्प है!


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