बेबसी इंसान की वा हालात कैर दीन्द
न त भूख लगदी न नींद।
कख जी जौ, क्या जी करू, कनकै होलु
रटण बस इखरी रैंद।
जैका मुख मा नज़र जांद आश वेमा ही हूंद
क्या पता वेमा ही कुई उपाय मिली जौ मन ई बुलन्द।
राति का अँधेरा सीण नि दींदा
दिन का उज्याला चैन नि लीण दींदा।
सिराणा बैठी की बेबसी इन चुंग्न्यान्द
सीणु त मुश्किल दगड़यों बैठ्युं भी नि राई जांद।
बार-बार ऐकी इन झुरांद
गाती मा जन कुमुरु सी बिनांद।
बात एक-एक सच्ची च
किलै की "खुदेड़" की अज़माई च।
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
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