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लिखूंगा कुछ ऐसे

लिखुंगा कुछ ऐसे की दर्पण नया
लेकिन परछाई पुरानी होगी।
बदले चाहे ज़माने लेकिन
मेरी कविताओं में बस पहाड़ो की कहानी होगी।
जो बदल गए है, जो नही बदले है
कोशिश उन्हें बदलने की होगी।
पेड़ सूखकर भले ही दरख़्त हो जाय
लेकिन फिर भी पतियाँ हरी होगी।
सूरज भले ही डूब जाय
लेकिन फिर भी चाँद में चाँदनी उसीकी होगी।
खेत-खलिहानों में देख लेना
हर ओर मेहनत किसानो की होगी।
नदियों की छलारो को गौर करना
जरूरत उसे सूखी पड़ी जमीन की होगी।

चीर कर देख लेना शरीर के किसी भी हिस्से को
मोहोब्बत बस पहाड़ो से होगी।
जब कभी बात होगी यादो की तो
"खुदेड़" को कगद हमेशा "खुदेड़ डाँडी काँठी" की होगी।

अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
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9716959339

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