Top Header Ad

Banner 6

मेरा सुख दुःख

मेरी कविता मेरी ज़ुबानी
नौ मेरु अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
जन्म दिल्ली प्रदेश मा लीनी (21 जुलाई 1984)
पहली बार देवभूमि उत्तरखण्ड का दर्शन सन् 86 मा व्हेनि।
बचपन बीती मेरु गाँव बजरखोड़ा।
पट्टी - बिचला चौकोट, तत्कालीन ब्लॉक - स्याल्दे, पत्रालय- कुलांटेश्वर, जिल्ला - अल्मोड़ा।
यू गाँव-गल्यो मा मेरु बचपन खेलि की बडु होइ
यखी डाँडी काँठयु गोर चरै मिल
आज भी मन कब्लान्दु च याद करी वो दिन।
तीन पास करी की दुबारा उंदु ऐग्यो
बड़ा लाड प्यार से माँ-पिताजी, दादा दादी नि बडु करयु।
सपना त उंका छाया मीथै बहुत कुछ बणाणा का
पर मी उंका सपनो कु मोल नि दे सकु अर तीन साल नौ मा ही रैग्यो।
तिसरा साल नौ पास करी दस भी पास व्हेगी
नौकरी का तलाश मा मी लगी।
छोटी भुली से उम्मीद छै वा कुछ करली
पर आश तोड़ी वा हमसे कुछ जादा ही दूर चलिगि।
खानदान मा कुई छाई ज्वा सबसे पैली बारह म ग्यायि
पर विधाता थै कुछ और ही मंज़ूर छाई।
पर जैदिन वा ग्यायि झणि किलै मीथै निंद भी नि आई
अब सबसे छोटी भुली भी बड़ी व्है ग्यायि
वील त कम से कम माँ-पिताजी की इज़्ज़त रखी द्याई।
अब एक बार फिर जमना की ठोकर खैकि मिल पढ़ै शुरू काई
द्वी हज़ार छै मा मिल बारह पास काई।
उन्नतीस अक्टूबर द्वी हज़ार सात मा ब्यो की घड़ी भी आई
लक्षमी का रूप मा रूपा मेरा घर आई।
ख़ुशी कु कुई ठिकाणु नि छाई जब द्वी जून द्वी हज़ार नौ भुली एक बार फिर बेटी का रूप मा घर आई।
एक जनवरी द्वी हज़ार ग्यारह मा ख़ुशी की घडी दुबारा आई
बेटा अक्षत जब घर मा खुशियो कु भण्डार ल्याई।
माँ-पिताजी न अपणु फ़र्ज़ पुरू कैरियाली अब मेरी बरी च
अब मेरी प्रदेश छोड़ी मुल्क अपणा जाणा की सोची च।
जौल मेरा बाना अपणु मुल्क छोड़ी
वू थै एक बार फिर पहाड़ो से जोड़ना की सोची च।
एक बार फिर बांजा पुंगड़ो थै खैण्डि की चलदा कना की ठरी च
पर दुबरा सोच वी च भविष्य क्या होलु बच्चों कु सोच यखी रुकी च।
कभी-कभी सोचदु छौ मिल यख रैकी भी क्या कैरियाली
जो मिल भी बच्चों मा आश वी धैरियाली।
अब क्या करू मी कुई मीथै समझैयाली
घार जाऊ या बौण रौ कुई उपाय बतैयाली।
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
facebook
twitter
youtube
9716959339

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ