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Cornus Capitata Bhamora भमोरा

भमोरा  Cornus Capitata

नमस्कार मित्रो आज एक बार फिर से आपके बीच एक नए उत्तराखण्डी फल के साथ आया हूं। इन पहाड़ो की गोद मे न जाने कितने असंख्य जड़ी बूटियां और वनस्पतियां है, और सभी का एक अलग महत्व है। सच कहूँ तो मुझे इनके बारे में लिखने में एक अलग ही आनंद आता है लेकिन साथ साथ यह विचार भी मन मे चलता रहता है कि पहाड़ इतना सम्पन्न होने के बावजूद भी क्यो पिछड़ा रह गया। दोस्तो आज का विषय एक ऐसे फल/ वनस्पति पर है, जिसका सबसे ज्यादा आनंद चरवाहों ने लिया होगा पहाड़ो में। पिछले अंक में हमने बात कि घिंघारू की आज हम इससे आगे बढ़ेंगे और जानेंगे एक और पहाड़ी औषधीय वनस्पति के बारे में जिसके बहुत से फायदे है। दोस्तो जैसा कि मैं अपने हर लेख में कहता हूं कि हमे अपने इन विलुप्त होती जा रही वनस्पतियों के बारे में जानना चाहिए और जागरूक होना चाहिए और अपने जानकारों को भी जागरूक करना चाहिए। मैं ये लेख इसलिए नही लिखता कि कोई मेरे ब्लॉग को पढ़े और ब्लॉग का ट्रैफिक बढ़े। यदि ऐसा होता तो शायद मैं भी औरो की तरह थोड़ा सा लिखता और बाकि लिंक दे सकता हूं, किन्तु मेरा शौक लिखने का है इसलिए लिखता हूं और उद्देश्य है अपनी उन वनस्पतियों को पहचान दिलाने की जिसे मैं पूरा करने का प्रयास करता हूं, यही कारण है कि मैं पूरे लेख को आप लोगो तक सोशल मीडिया के माध्यम से पहुचता हूं।
तो चलिए जानते है आज के विषय पर और बात करते है।
भमोरा एक ऐसा फल जिसका भोग ऋषि मुनियों ने भी खूब किया है आप लोगो ने भी इसका सेवन कभी न कभी जरूर किया होगा। भमोरा का वैज्ञानिक नाम Cornus Capitata है, यह Cornaceae कुल का है। इसका उद्गम यू तो भारत को ही माना जाता रहा है और हिमालयी क्षेत्रो में ही पाया जाता है। यह फल दिखने में स्ट्रॉबेरी की तरह ही होता है और इसको हिमालयन स्ट्रॉबेरी के नाम से भी जाना जाता है। यह फल भारत के अलावा नेपाल, चीन, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में भी होता है। यह 1000 से 3000 मीटर की ऊँचाई वाले स्थानों पर पाया जाने वाली दुर्लभ वनस्पति है, दुर्लभ पहले नही थी किन्तु अब होने लगी है। इसके पकने का समय सितम्बर से नवम्बर के बीच होता है। जब यह फल पक जाता है तो स्ट्रॉबेरी की तरह ही लाल होता है। अब बात करेंगे इसके औषधीय गुणों व पौष्टिकता की।
डॉ. राजेन्द्र डोभाल जी के वॉल से यह जानकारी प्रेषित कर रहा हूं, अक्सर लोग कहते है कि इतनी जानकारी कहा से लाते हो तो आपको बता दू कि डॉ. राजेन्द्र डोभाल जी जो कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, उत्तराखण्ड में महानिदेशक के पद पर है, इन्होंने पहाड़ो की लगभग सभी वनस्पतियों पर लिखा है। वनस्पति की साधारण जानकारियां मैं स्वयं के अनुभव से लिखता हूं किन्तु इसकी पौष्टिकता और औषधीय गुणों की जानकारी लगभग इन्ही के द्वारा लिखे लेखों से पढ़कर फिर लिखता हूं। अब इसे आप चोरी कहे या जो कुछ कहे किन्तु कॉपी पेस्ट का न तो मैं समर्थक हूं और न ही करता हूं। संदर्भ कही से भी मिले ले लेता हूं किन्तु लेखन मैं अपने अनुसार ही करता हूं।
अब बात करेंगे भमोरा के औषधीय गुणों और पौष्टिकता की। इसकी छाल की यदि बात करे तो इसमें टेनिन निष्कर्षण के लिए उपर्युक्त होता है जिस वजह से फार्मा कम्पनियां औषधि निर्माण में स्का प्रयोग करते है। इसमें Hydrozable tenin पाया जाता है। कई अध्ययनो में इसकी जड़ो में पॉली फिनॉल का निष्कर्षण भी किया गया है। भमोरा में मधुनाशी गुण भी पाए जाते है। इसके फल में एक ऐसा अव्यव भी पाया जाता है जो कि अन्य फलों की तुलना में 10 से 15 गुना अधिक पाया जाता है, यह अव्यव है एंथोसाइनिन। इसमें मौजूद टेनिन एस्ट्रीजेंट के रूप में बुखार और दर्द के इलाज हेतु पाया जाता है। वैज्ञानिक अध्ययनों से यह भी सामने आया है कि जो टेनिन होता है इसका उपयोग कुनैन के विकल्प में भी उपयोग होता है भमोरा की कुछ प्रजातियों के उपयोग चीनी और कोरियन औषधीयो में भी किया जाता है जैसे अतिसार, खांसी, फ्लू, मूत्र रोग तथा लीवर और किडनी के बेहतर कार्य हेतु भमोरा उपयोग में लाया जाता है। यह ठै इसके औषधीय गुण अब बात करते है इसकी पौष्टिकता की, इसमें प्रति 100 ग्राम में प्रोटीन  2.58%, फाइबर 10.43%, वसा  2.5%, पोटेशियम  0.46 मिलीग्राम, तथा फासफोरस  0.07 मिलीग्राम, इसमें पाया जाता है।
दोस्तो यदि इतने गुणों से सम्पन्न इन वनस्पतियों का यदि व्यवसाय किया जाए तो हमारा प्रदेश भी आगे बढ़ेगा और यहाँ से हो रहे लगातार पलायन पर भी काबू पाया जा सकता है तथा आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी। रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

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आपकी प्रतिक्रिया और सुझाव ही है जो मुझे और बेहतर लिखने में सहयोग करेंगे और मुझे लेखन का हौसला देंगे। अगले लेख में फिर आपके बीच हाज़िर होऊंगा एक और ऐसी ही वनस्पति के साथ।

अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339

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