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Ghas ar Ghaseri घास अर घस्येरि

 घास अर घस्येरि


एक दा गौं कि बेटि-ब्वारि घास ल्याणा खुणि ईड़ाडाँड जयीं छैं.(ईड़ाडाँड हमर इनै मर्चुला-शंकरपुर सड़को मथि जो डांडु च वैखण ब्वल्दि, यो कार्बेट पार्क कु ही अंतर्गत च|) 

यख कुँमौ-गढ़वाळ या इन बोलि सकदवाँ कि दुशानै घस्येरि-लखड़ेळि आंदि छै भौत दूर- दूर बटि, तब घासै भौत खैरि हूंदि छै, आजै तरौ न कि क्वलण पैथर ही बिठिगि द्वीएक घास उनि निकल जालु|सल्ट, नैनिडाँड कि सीमा म त सात गौं कु बल एक ही पंदेरु छाइ, हमर बि दिख्यूँ छाइ कि पलछाल गौं त छैं छा पर डाळि-बूटि कुछ ना!... ददि ब्वलदि छै बल कि वख एक घिलमोड़ा बुज्या बाना भि लणैं ह्वे जांद छाया अर जैकु वो घीलमोड़ु रैंदु छाइ वो घिलमोड़ु काटि वेकु डिल्लु बणैक धरदु छाइ अर तब लखुड़ु बदल जगांदु छाइ|


त त वो घस्येरि जब जंगल बटि घासौ बिठगा लैकि बाटा म ऐनि त तब तक एक ठ्यल्या ऐग्या.... एक सौंगुड़ी का बेटि-ब्वारि छै त जरा-जरा ठठा-मजाक बि हूंदि ही च... वो बिचरि भि हैंसि मजाक म डरैबर भैजि खण ब्वन बैठगिं कि हमथा भि अपुरु ठ्यल्ला म ली जा... डरैबर भि तैयार ह्वेग्या... घस्येर्यूं का अपखुणै पठ्ग्वा फर लिटा कि कैका द्वी ढबण्या(रोटि) त कैकु एक लोठ(रोटि) ल्ययीं छै... किलै कि फजल-फजल त खाणौ टैम छा न ऊँम,अर सासू डैर अलग छाइ... पर डरैबरन ठ्यल्ला रोकि त तब कैथै लगीं छै खाणकि जिन,.. सब्यूँन सरासरि घासा बिठगा ठ्यल्ला म धैर दिन अर अफ भि बैठ गिन, सड़क-सड़क त जरसी छा वैका बाद त फिर पैदल ही जाण छाइ.. सब घसेरि 'जुगराज रै' कु दगड़.. अपड़ि निश्छल भासा म डरैबर थै हैंसि-मजाक वळि बत्त सुणांदि-सुणांदि भैया उतिरि गैन| 

अब कहानी म ऐ ट्विस्ट... घस्येरि 10 अर बिठगा 9... ऐ ब्वै यो क्य ह्वे!!!!... द्वी-तीन दा गैण दि पर दै.. बिठिगि त 9 ही छै... अब पल्यूड़ि पछ्याण त एक ब्वारि कि बिठिगि गैब...सरु बिचरि अफ बैठिगे ठ्यल्ला म अर बिठिगि रै गै वखि भैया म......सरु कि सासु भि महाखतरनाक!!!.... अब क्य होलु?? सरु कु रुण्याँ मुक देखिकि सबुन सोचि-सोचि!!!... बड़ि मुस्किल से त घास कट्यूँ छौ, उदगा दूर जयाँ छा भूखा-तीसा बिचरि... 

अँ हाँ.... अब भूख से याद आइ कि पठग्वा पर एकै-द्वी-द्वी र्वटा छन लिटयाँ.... एक घस्यैरि न दिमाग दौड़ै बल इन करला कि यीं सरु थै यों रवटों खवै द्यूंला छकैकि... सबि अपड़ा-अपड़ा र्वटा द्यो... जदगा या खै सकलि खाण द्यो छकैकि... अर जदगा बचि जाला हम खै द्यूलां बाँटि-चूटि कै| पर खबरदार सरु घौर जैकि कुछ न खै...किलै कि तेरि सासु म हम ब्वलला कि तेरि ब्वारि थै भरि शूल-पीड़ा/डौ/पेटदर्द हूणू छाइ...इलै तु तीन बेळि र्वटा अबि खा... घौर नि खाणु कुछ| सरु न भि जदगा पच्येलि सकिन... पच्येलि दिन रोटि.. बकि हौरि घस्येर्यूं न निमाड़ि दिन|

अब गुठ्यार म पौंछि ह्वैगि ड्रामा सुरु.....सरु कि छकैकि रोटि खैकि लद्वड़ि थमींं छै...बल हे ब्वे मोरि ग्यों डौ न...अर हौरि भूखि/अधप्यटि घसेरी ब्वनी- "जी!! तुमरि ब्वारि थै म्वरी-म्वरी बचै कि ल्ययाँ छौं हम.. भारै अपड़ि ब्वारि जिंदगी देखा... यीं कै त आज घास भि नि कट्या जम्मा ना... अर हम ले कटदा त कख बटि बणों घास ही नीच... वो तमाम गढ्वलण काटी लीं गिन.... अपखुणै ही चार-चार पूळि बड़ मुस्किल से मिलिन हमथै... फिर अपड़ि सासु-रौळा डैर भि छै... ब्वलदि कि सरु थै त डौ हुयूँ रै होलु पर तुमथै.. गुरौ धड़कयूँ छौ कि?? जो तुम सिदगा कम ल्ययाँ घास|"

बस इदगा सुणैकि सरु सासु त बखयै गे... वा कख्या कख्या कि लै त छैं च, ब्वारि थै घौर पर अपड़ा स्वामि जि थै देखिकि बरड़ट त करण ही बैठिगे... "हमखण ही धरीं रै होलि या दुखऽ कुटरि, लोखु ब्वारि क्य गडौळा/बिठगा ल्याँन घास का अर एक ह्या च हमरि अलबेलि.... |"

इन कैन नि द्याख कि हौरि घस्येर्यूं न भुखि रैणु,कम खाणु मंजूर करि पर एक-एक पूळि घास दीणु मंजूर नि ह्वे ऊँथै.... हे रे घासा!! तेरि आसा!!! 

(©®सुनीता ध्यानी)

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