पहाड़ वीरान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया।
जिस बगीचे ने पाला हमें
जिस बगीचे ने पाला हमें
वो बंदरों की जान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया।
जहां गूंजी छोड़ा चांचरी
जहां गूंजी छोड़ा चांचरी
अब सूअरों का गान हो गया
नित जो आंगन महकता रहा
अरे वही सुनसान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया।
ऐ खोलियों के मालिक सुनो
ऐ खोलियों के मालिक सुनो
कैसे फ्लैट शान हो गया
ऐ खोलियों के मालिक सुनो
कैसे फ्लैट शान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया।
जहां धान से लदा खेत था
जहां धान से लदा खेत था
वो झाड़ियों की खान हो गया
वो झाड़ियों की खान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया।
सपूत जो बनाया गांव ने
सपूत जो बनाया गांव ने
वही शहर को दान हो गया
वही शहर को दान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया।
वो पहाड़ वीरान हो गया
अब वही मेहमान हो गया
अरे वही सुनसान हो गया
बंदरों की जान हो गया
सूअरों का गान हो गया
कैसे फ्लैट शान हो गया
वो झाड़ियों की खान हो गया
वही शहर को दान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया।
स्वर व रचना : डॉ. विद्या सागर कापड़ी
संपादन : अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया।
नित जो आंगन महकता रहा
नित जो आंगन महकता रहा
अरे वही सुनसान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया।
जिस बगीचे ने पाला हमें
वो बंदरों की जान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया।
जहां गूंजी छोड़ा चांचरी
जहां गूंजी छोड़ा चांचरी
अब सूअरों का गान हो गया
नित जो आंगन महकता रहा
अरे वही सुनसान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया।
ऐ खोलियों के मालिक सुनो
ऐ खोलियों के मालिक सुनो
कैसे फ्लैट शान हो गया
ऐ खोलियों के मालिक सुनो
कैसे फ्लैट शान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया।
जहां धान से लदा खेत था
जहां धान से लदा खेत था
वो झाड़ियों की खान हो गया
वो झाड़ियों की खान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया।
सपूत जो बनाया गांव ने
सपूत जो बनाया गांव ने
वही शहर को दान हो गया
वही शहर को दान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया
जिसने जीना सिखाया हमें
वो पहाड़ वीरान हो गया।
वो पहाड़ वीरान हो गया
अब वही मेहमान हो गया
अरे वही सुनसान हो गया
बंदरों की जान हो गया
सूअरों का गान हो गया
कैसे फ्लैट शान हो गया
वो झाड़ियों की खान हो गया
वही शहर को दान हो गया
जो निवासी पहाड़ों का था
अब वही मेहमान हो गया।
स्वर व रचना : डॉ. विद्या सागर कापड़ी
संपादन : अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
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