स्वतंत्रता दिवस की आप सभी को शुभकामनाएं
आज विद्यार्थी जीवन के उन पलों की बहुत याद आती है, यू तो मैंने गाँव के विद्यालय में तीसरी कक्षा तक ही पढ़ा है लेकिन वो वक़्त आज एक अजीब सा एहसास दिलाता है। आज बात करूंगा जब हम 26 जनवरी गणतंत्र दिवस और 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस में अपने स्कूल के नजदीक पूरे गांव में प्रभात फेरी करते थे सबसे आगे एक साथी तिरंगे को लेकर चलता और पीछे से गुरुजी हमे पंक्तिबद्ध करके इस फेरी का हिस्सा होते। यहां से हम अपने देश भारत की जय जय करते हुए नदियों, खेत-खलिहानों, और गाँव को गुंजाते आगे बढ़ते फिर किसी के भी आंगन में वृताकार तरीके से खड़े होकर देशभक्ति गीत गाते और फिर आगे बढ़ते हुए सभी एक स्वर में उस कविता को बोलते जो आपने जरूर पढ़ी होगी
"वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो"
कोई कोई गुड़ देते थे घर से और गुड़ कोई आज जैसे नही होता था, बल्कि बड़ी भेली होती थी जो लगभग शायद ढाई किलो की होती थी। फिर स्कूल में वापिस लौटते और कार्यक्रम होता कार्यक्रम समापन के बाद जो गुड़ मिला होता था वो सभी विद्यर्थियों और अध्यापकों में बट जाया करता था।
आखिर में राष्ट्रगान और सारे जहा से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा जरूर गाया जाता था।
कितना षहच था वो समय कि अध्यापक हमे हमारे न से भले ही नही जानते थे लेकिन दादा या पापा के नाम से जरूर जानते थे। गुरुजी को गुरुजी कहा करते थे सर नही।
आज कि तरह हमें मालूम न था कि हमारे देश मे इतनी जाति और समुदाय भी है सब आपस मे मिलकर रहते थे। धर्म क्या होता है पता नही था।
हो सकता है मेरे स्मरण में कुछ कमी हो कुछ गलतियां राह गयी हो तो क्षमा चाहूंगा।
आपका भी कभै ऐसा अनुभव रहा हो तो जरूर प्रतिक्रिया दीजियेगा।
जयहिन्द जय भारत
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339
आज विद्यार्थी जीवन के उन पलों की बहुत याद आती है, यू तो मैंने गाँव के विद्यालय में तीसरी कक्षा तक ही पढ़ा है लेकिन वो वक़्त आज एक अजीब सा एहसास दिलाता है। आज बात करूंगा जब हम 26 जनवरी गणतंत्र दिवस और 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस में अपने स्कूल के नजदीक पूरे गांव में प्रभात फेरी करते थे सबसे आगे एक साथी तिरंगे को लेकर चलता और पीछे से गुरुजी हमे पंक्तिबद्ध करके इस फेरी का हिस्सा होते। यहां से हम अपने देश भारत की जय जय करते हुए नदियों, खेत-खलिहानों, और गाँव को गुंजाते आगे बढ़ते फिर किसी के भी आंगन में वृताकार तरीके से खड़े होकर देशभक्ति गीत गाते और फिर आगे बढ़ते हुए सभी एक स्वर में उस कविता को बोलते जो आपने जरूर पढ़ी होगी
"वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो"
कोई कोई गुड़ देते थे घर से और गुड़ कोई आज जैसे नही होता था, बल्कि बड़ी भेली होती थी जो लगभग शायद ढाई किलो की होती थी। फिर स्कूल में वापिस लौटते और कार्यक्रम होता कार्यक्रम समापन के बाद जो गुड़ मिला होता था वो सभी विद्यर्थियों और अध्यापकों में बट जाया करता था।
आखिर में राष्ट्रगान और सारे जहा से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा जरूर गाया जाता था।
कितना षहच था वो समय कि अध्यापक हमे हमारे न से भले ही नही जानते थे लेकिन दादा या पापा के नाम से जरूर जानते थे। गुरुजी को गुरुजी कहा करते थे सर नही।
आज कि तरह हमें मालूम न था कि हमारे देश मे इतनी जाति और समुदाय भी है सब आपस मे मिलकर रहते थे। धर्म क्या होता है पता नही था।
हो सकता है मेरे स्मरण में कुछ कमी हो कुछ गलतियां राह गयी हो तो क्षमा चाहूंगा।
आपका भी कभै ऐसा अनुभव रहा हो तो जरूर प्रतिक्रिया दीजियेगा।
जयहिन्द जय भारत
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
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