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bhimal(भ्युल) Grewia optiva

भ्युल


   पिछले अंक में हमने बात की थी  कुंड़जू Artemisia(नागदाना)
की जिसमे हमने आपको बताया था की इस पौधे का क्या इस्तेमाल है तथा किस-किस कम में यह पौधा प्रयोग में लाया जाता है। आज हम जानकारी लेकर आये ऐसे ही एक उत्तराखंडी वृक्ष की, यह वृक्ष बेहद अनमोल वृक्ष है। तो आइये जाने इसके बारे में।
     उत्तराखंड में औषधीय वृक्षों की कोई कमी नहीं है, औषधीय वृक्षों में एक नाम है भीमल, जो की काफी बड़ी मात्रा में पहाड़ों पर खेतों के किनारे पाए जाते है, इसे हम भीकू, भीमू, और भियुल नाम से भी जानते है, इस वृक्ष का कोई ऐसा भाग नहीं है जो कम नहीं आता हो, इसके बीज को खाया जाता है फल के तौर पर जब यह पाक जाता है तो ये बहुत स्वादिष्ट होता है, भीमल के पत्ते मवेशी चाव से खाते है जिससे कम दूध देने वाले मवेशी दुधारू हो जाते है, भीमल की डंडियाँ — डंडियों से पत्ते जानवरों को डालने के बाद डंडियों को बांधकर गाड़ (नदी) के पानी में रखकर पत्थरों से करीब ३-४ महीनो के लिए दबाकर रख देते है, इन डंडियों से जब पानी निकला जाता है तो इसकी चाल से सलू (सण) बन जाता है, जिनसे रस्सियाँ, दौंला (जानवरों को बाँधने वाला) इत्यादि बनते है, अंदर की नंगी डंडियों को केड़ा कहते है और इनको तोड़कर मुठ्ठी में पक्कद कर इनके मुंह में आग एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाई जाती है या इन्हें पहेले जलाकर इनके ऊपर लकडियों को आग जलाई जाती है, इसका उपयोग बल धोने कपडे धोने में भी किया जाता है। भीमल के कच्ची सीटों से चाल निकालकर डंडे से कूट-कूटकर अठाला (गाँव) नामक झाग से महिलाएं बालों को शैंपू की तरह धोती है, शहरों की बड़ी पंसारी की दुकानों पर भी शिकाकाई की मिश्रण सामग्री के साथ अब भीमल की छाल भी मिल रही है, यही क्रम भीमल, भीखु, या भीमू का चलता रहता है, पहाड़ों में वृक्ष इश्वर का वरदान है। इस चित्र में दर्शाया गया है की किस प्रकार इसे पानी में दबाकर रखा जाता है। और फिर इसे सुखाया जाता है। यहाँ दर्शाए गए चित्रों में आप देख सकते है की यह पेड़ कैसा होता है फिर किस प्रकार इसे पानी में दबाया जाता है, और फिर किस प्रकार से इसे इस्तेमाल में लाया जाता है।


अनोप सिंह नेगी(खुदेड़) 







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