होली हो.............
स्नेह अमी मैं पी जाऊँ तो,उर में सुख की डोली हो।
उर की कटुता मिट जाये तो,
उर की पावन होली हो।।
सबमें छुपा हुआ जो सुर है,
उसका मैं दर्शन कर लूँ।
उसकी नेहमई मूरत को,
नयनों में अपने भर लूँ।।
किसी क्षुधित को भोग लगाऊँ,
तो मेरा मन भर जाये।
पीड़ित, शोषित जन को देखूँ,
नयन नीर नित झर आयें।।
मेरी रसना में पावनतम,
मधु सी मधुरिम बोली हो।
उर की कटुता मिट जाये तो,
उर की पावन होली हो।।
पंचविकारों की सरिता को,
जप-तप कर मैं मोड़ सकूँ।
रिपु से आते सर शब्दों को,
नेह ढाल से तोड़ सकूँ।।
अधरों पर हो नाम किसन का,
डोर सौंप दूँ जीवन की।
तड़पे जैसे मकर नीर बिन,
उठे तड़प मेरे मन की।।
मेरे घर में नित भजनों की,
ज्योतिर्मय रंगोली हो।
उर की कटुता मिट जाये तो ,
उर की पावन होली हो।।
स्नेह अमी मैं पी जाऊँ तो,
उर में सुख की डोली हो।
उर की कटुता मिट जाये तो,
उर की पावन होली हो।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
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