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Vidhyasagar Kapri Ke Ikkis Suman विद्यासागर कापड़ी के इक्कीस सुमन

 मेरे इक्कीस सुमन.....

१-जय कपिवर जय,जय हनुमाना ।
    मैं तव दास मुझे अभिमाना ।।

Vidhyasagar Kapri Ke Ikkis Suman विद्यासागर कापड़ी के इक्कीस सुमन२-तुम मम देवा मैं तव दासा।
    मैं तम हूँ प्रभु तुम प्रकाशा ।।

३-कठिन राह है प्रभु जीवन की।
   आओ हरो व्यथा मम मन की ।।

४- हे शंकर सुत हे बलशाली।
     तुमने सदा व्यथायें टालीं ।।

५-तुम सम कौन हुआ बलवाना।
    धरते रूप नवल नित नाना ।।

६-राम भक्त जानकी दुलारे ।
    लखन लाल हित शैल उखारे।।

७-डग धर एक लाँघा रत्नाकर ।
    लंका जली,जली धू-धू कर ।।

८- सीता खोज गये तुम स्वामी ।
     समझे तव बल अन्तर्यामी ।।

९-रवि की ओर बढ़े फल माना ।
    डरे राहु दूजा सम जाना ।।

१०-सुर ने वज्रायुध तब ताना ।
      टूटा हनु तब हो हनुमाना ।।

११-सारे सुर कीनो जब राजी ।
      अमरदान दीनो ब्रह्माजी ।।

१२-लेकर नाम भूत सब भागें ।
      सोये भाल सभी के जागें ।।

१३-हो तुम साथ भय क्या स्वामी।
     तुम जानो सब अन्तर्यामी ।।

१४-तुमको अपना सब कुछ माना।
अभयदान दीजो हनुमाना ।।

१५-सुरसा मुख सम रूप बढ़ाये ।
      धरा रूप लघु मुख से आये ।।

१६-पवन सुत हे अंजनी लाला ।
   तुमने सकल विपत को टाला ।।

१७-रावण सुत अक्षय को मारा।
      लंका में जा बाग उजारा ।।

१८-लंका का हर गेह जलाया ।
    नाथ विभीषण भवन बचाया ।।

१९-विनय करूँ दोऊ कर जोरी ।
      पकड़ो मेरी जीवन डोरी ।।

२०-मम कुमति हर विमल मति कीजै ।
 सागर की विनती सुन लीजै ।।

२१-दीजो पग मेरे आगर को ।
      निज शरण दीजै सागर को ।।

     ©डा० विद्यासागर कापड़ी
         सर्वाधिकार सुरक्षित

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