मेरे इक्कीस सुमन.....
मैं तव दास मुझे अभिमाना ।।
२-तुम मम देवा मैं तव दासा।
मैं तम हूँ प्रभु तुम प्रकाशा ।।
३-कठिन राह है प्रभु जीवन की।
आओ हरो व्यथा मम मन की ।।
४- हे शंकर सुत हे बलशाली।
तुमने सदा व्यथायें टालीं ।।
५-तुम सम कौन हुआ बलवाना।
धरते रूप नवल नित नाना ।।
६-राम भक्त जानकी दुलारे ।
लखन लाल हित शैल उखारे।।
७-डग धर एक लाँघा रत्नाकर ।
लंका जली,जली धू-धू कर ।।
८- सीता खोज गये तुम स्वामी ।
समझे तव बल अन्तर्यामी ।।
९-रवि की ओर बढ़े फल माना ।
डरे राहु दूजा सम जाना ।।
१०-सुर ने वज्रायुध तब ताना ।
टूटा हनु तब हो हनुमाना ।।
११-सारे सुर कीनो जब राजी ।
अमरदान दीनो ब्रह्माजी ।।
१२-लेकर नाम भूत सब भागें ।
सोये भाल सभी के जागें ।।
१३-हो तुम साथ भय क्या स्वामी।
तुम जानो सब अन्तर्यामी ।।
१४-तुमको अपना सब कुछ माना।
अभयदान दीजो हनुमाना ।।
१५-सुरसा मुख सम रूप बढ़ाये ।
धरा रूप लघु मुख से आये ।।
१६-पवन सुत हे अंजनी लाला ।
तुमने सकल विपत को टाला ।।
१७-रावण सुत अक्षय को मारा।
लंका में जा बाग उजारा ।।
१८-लंका का हर गेह जलाया ।
नाथ विभीषण भवन बचाया ।।
१९-विनय करूँ दोऊ कर जोरी ।
पकड़ो मेरी जीवन डोरी ।।
२०-मम कुमति हर विमल मति कीजै ।
सागर की विनती सुन लीजै ।।
२१-दीजो पग मेरे आगर को ।
निज शरण दीजै सागर को ।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
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1 टिप्पणियाँ
बहुत ही सुन्दर।
जवाब देंहटाएंजय हनुमान।
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