"आजकलै की ब्वारी"
.जन्नी ब्यौ कैरिकी ब्वारी, आणी ससुराल घार,
उन्नी पति दगड, परदेश जाणा की लगी सार,
ब्यौला का ब्वे-बूबा ब्वना, ब्वारी थें यखी राख,
तू जाले म्यारा लाटा, ब्वारी थें लीजे अगली बार,
अर इन बात सुणिकी, ब्यौली गुस्सा कन्नी भारी,
बल याच हमरा पहाड़े की, आजकलै की ब्वारी,
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ना नणद दगड बणद, ना सासू दगड बणाणी चा,
ससुर, देवरों दगड बी, वत गुस्सा मा बच्याणी चा,
शायद कखी ना कखी त, कमी होली हमरु समाज मा,
यत मैता कु लाड़- प्यार, वा ससुराल मा खुज्याणी चा,
पर कतगे ब्वारी कु गिचु, तेज तर्रार आरी चा,
या म्यारा पहाडों मा, आजकलै की ब्वारी चा,
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अबत कुल बीए., एम.ए. पास ब्वारी, हर घार मा आणी चा,
सासूजी मिसे यू काम नि हून्दू, पतनी अपथें क्य चिताणी चा,
सासू बेचारी इन सुणि की, सब्बी काम कैर दिणी घारा कु,
अर ब्वारी बैठिकी, फेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब चलाणी चा,
आजकल कु जमना मा, सबथें इंटरनेट की बीमारी चा,
गाली खैला कुछ ना ब्वाला, या आजकलै की ब्वारी चा,
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अपड़ा ससुराल मा ज्वा ब्वारी, मैत जन ही खाली,
त विन्का ससुराल मा, हंसी-खुशी एक दिन आली,
अर एक बात ओर याद राखा आप सब्बी लोग,
कि हमेशा एक ना, द्वी हाथों से बजद बल ताली,
जू अपड़ा जिम्मेदारियों थें समझली, वाई एक श्रेष्ठ, गुणवान नारी चा,
कवि सतीश बी सोचणू, किलै सबसे अलग आजकलै की ब्वारी चा.?
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कवि- सतीश सिंह बिष्ट,
ग्राम- नैखाणा, (नैनीडांडा, धुमाकोट),
जिला- पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड,
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गजब
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