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Shayari Nitish Ki Kalam Se शायरी नितीश की कलम से

शायरी नितीश की कलम से 

टूटा जो दिल मेरा तो मुझे याद आया,
दिल तो में भी कई तोड़ आया हूँ

मेरी जिल्लत और हार इससे ज्यादा क्या होगी
मै मंदिर में एक लड़की के लिए गिड़गिड़ाता हूं

मेरी बिखर चुकी जिन्दगी तुम अब भी बर्बाद करती हो,
मैंने सुना है तुम अब भी मुझको याद करती हो

आज फिर तेरी यादों ने मेरा होशोहवास छीना है
मर जायेंगे हम अगर यही सिलसिला रहा तो

इन बादलो के पार है इक रूहों का शहर,

Shayari Nitish Ki Kalam Se शायरी नितीश की कलम से हम मिलेंगे वहाँ, मेरा नाम याद रखना..

अधूरी सी कुछ उम्मीदे थी "लक्की",
जिसने तुझे जिन्दा रखा

अब बस हुई तेरे झूठे ख़्वाबों की "लक्की"
इंतिहान हो गयी अब जाग जा

इबादत के सबके अपने तऱीके होते हैं,
खैर मुझे तुम्हारा नाम बेहद पसंद है..!!

तेरे शहर से ,वापस खाली हाथ मुड़े थे जब...
क्या बताएं , हम पर क्या गुज़री थी तब


सिलसिले के बाद कोई सिलसिला रौशन करें
इक दिया जब साथ छोड़े दूसरा रौशन करें


नीतीश “लक्की”

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