नारी अद्वितीय कृति
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श्रृंगार में नारी रूप धरती का स्वर्ग है।सुशोभित करके स्त्री रूप देवों ने,
सर्व गुण सम्पन्न परिधान किया।
धन्य जगत नियंता ने सुंदरता में,
स्त्री को अप्रतिम छवि रूप दिया।
श्रृंगार में नारी रूप-------
प्रतिमूर्ति भावों की-------
धरा गोद में जननी तमगा देकर,
स्वर्ग से बढ़कर सम्मान किया।
परमात्मा ने ऐश्वर्यावान बनाकर,
नारी रूप में ममता आंचल दिया।
श्रृंगार में नारी रूप-------
प्रतिमूर्ति भावों की-------
बनायी ममता मूरत जब सृष्टि को,
नारी रूप में निज वात्सल्य दिया।
सुख-दुख में समर्पित आंचल को,
अनगिनत रूप शिरोधार्य किया।
श्रृंगार में नारी रूप-------
प्रतिमूर्ति भावों की-------
अबला कह कर मन के तारों को,
झंकृत कर केवल अपमान किया।
दिया तमाचा ऐसा कहने वालों को,
जल थल नभ सर्वत्र परचम दिया।
श्रृंगार में नारी रूप-------
प्रतिमूर्ति भावों की-------
अबोध बालमन मातृत्व स्पर्श से,
ममता आलिंगन कर खिल जाती।
अहसासों से आंसुओं का आशय,
देवत्व शक्ति से नारी समझ जाती।
श्रृंगार में नारी रूप-------
प्रतिमूर्ति भावों की-------
सुनील सिंधवाल "रोशन" (स्वरचित)
काव्य संग्रह "हिमाद्रि आंचल"
1 टिप्पणियाँ
सुन्दर रचना
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