मधुशाला
अरि के उर हो प्रतिशोध की,धधक रही बड़ी ज्वाला |
उसको नीर बना सकती है,
वाणी की ही मधुशाला ||
यदि कोई रखता हो उर में,
गरल मिली थोड़ी हाला |
मैं उसके हित रखूँ प्रीत की,
पूरी-पूरी मधुशाला ||
प्रीत की हर बूँद बनाती,
छलकाती सुख की हाला |
अरिता की तनिक घूँट से,
बनती दु:ख की मधुशाला ||
रिपुता ने तो नष्ट किया है,
करुणा ने भू को पाला |
इसी लिए मुझको भाती है,
दया,प्रीति की मधुशाला ||
सुरभित मित्रता का पी लो ,
भर-भर बाँट कर प्याला |
नश्वर तन है धरी रहेगी,
कटुता की ये मधुशाला ||
©डाoविद्यासागर कापड़ी
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