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Madhushala Dr. Vidhyasagar Kapri Ki Part 2 मधुशाला डॉ. विद्यासागर कापड़ी की भाग 2

      मधुशाला

अरि के उर हो प्रतिशोध की,
         धधक रही बड़ी ज्वाला |
उसको नीर बना सकती है,
        वाणी की ही मधुशाला ||
Madhushala Dr. Vidhyasagar Kapri Ki

यदि कोई रखता हो उर में,
       गरल मिली थोड़ी हाला |
मैं उसके हित रखूँ प्रीत की,
       पूरी-पूरी मधुशाला ||

प्रीत की हर बूँद बनाती,
      छलकाती सुख की हाला |
अरिता की तनिक घूँट से,
      बनती दु:ख की मधुशाला ||

रिपुता ने तो नष्ट किया है,
         करुणा ने भू को पाला |
इसी लिए मुझको भाती है,
        दया,प्रीति की मधुशाला ||

सुरभित मित्रता का पी लो  ,
          भर-भर बाँट कर प्याला |
नश्वर तन है धरी रहेगी,
         कटुता की ये मधुशाला ||


     ©डाoविद्यासागर कापड़ी

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