पथ के पाथर
पथ का पाथर कहाँ किसे कब ,
कहो तनिक छल पाता है |
ठोकर देता तभी पराया,
मीत पता चल पाता है ||
यदि राह पर सुमन केवल हों ,
सुख का भी आभास न हो |
यदि बाधा ना बाँह पसारे ,
उर में कोई आस न हो ||
पथ के रोड़े दर्शाते हैं ,
अरि की जो मुस्कान कुटिल |
कहते मोड़ राह को अपनी,
पानी है तुझको मंजिल ||
आनंदों की शुभ अनुभूति भी,
शूल नहीं तो कब होती |
गन्तव्यों की खुशी राह पर,
रोड़े हों तो तब होती ||
©डाoविद्यासागर कापड़ी
पथ का पाथर कहाँ किसे कब ,
कहो तनिक छल पाता है |
ठोकर देता तभी पराया,
मीत पता चल पाता है ||
यदि राह पर सुमन केवल हों ,
सुख का भी आभास न हो |
यदि बाधा ना बाँह पसारे ,
उर में कोई आस न हो ||
पथ के रोड़े दर्शाते हैं ,
अरि की जो मुस्कान कुटिल |
कहते मोड़ राह को अपनी,
पानी है तुझको मंजिल ||
आनंदों की शुभ अनुभूति भी,
शूल नहीं तो कब होती |
गन्तव्यों की खुशी राह पर,
रोड़े हों तो तब होती ||
©डाoविद्यासागर कापड़ी
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