मधुशाला
दीप जलाकर नव मयूख से,
खोल दिया उर का ताला |
नवल दिवस में भेज रहा हूँ ,
शुभ स्मृति की मधुशाला ||
![Madhushala Dr. Vidhyasagar Kapri Ki Madhushala Dr. Vidhyasagar Kapri Ki](https://1.bp.blogspot.com/FyBofRTREXJIIg8bFKHIuTzOtzlbSXomGLw7zD1jOQMlfANRXHROsr4i_55lESSXb_x9H6FNkXQ=s400)
हृदय में नव आनन्दों का,
छलके परिमल का प्याला |
और बुलाये हर्षित होकर ,
मुस्कानों की मधुशाला ||
प्रीत नवेली,मित्रों से नित,
आये ले सुख की माला |
और लेखनी गीत सुनाये,
पा काव्य की मधुशाला ||
बैरी भी कटु भाष बोलकर,
दे न सकें उर में छाला |
अधरों में नित मन्दहास हो ,
खुले प्रीत की मधुशाला ||
पथ पर बढ़ते कदम रहें नित ,
रोके ना अरि का जाला |
स्वयं दौड़कर गले लगाये,
गन्तव्यों की मधुशाला ||
©डाoविद्यासागर कापड़ी
दीप जलाकर नव मयूख से,
खोल दिया उर का ताला |
नवल दिवस में भेज रहा हूँ ,
शुभ स्मृति की मधुशाला ||
हृदय में नव आनन्दों का,
छलके परिमल का प्याला |
और बुलाये हर्षित होकर ,
मुस्कानों की मधुशाला ||
प्रीत नवेली,मित्रों से नित,
आये ले सुख की माला |
और लेखनी गीत सुनाये,
पा काव्य की मधुशाला ||
बैरी भी कटु भाष बोलकर,
दे न सकें उर में छाला |
अधरों में नित मन्दहास हो ,
खुले प्रीत की मधुशाला ||
पथ पर बढ़ते कदम रहें नित ,
रोके ना अरि का जाला |
स्वयं दौड़कर गले लगाये,
गन्तव्यों की मधुशाला ||
©डाoविद्यासागर कापड़ी
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