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Madhushala Dr. Vidhyasagar Kapri Ki Part 1 मधुशाला डॉ. विद्यासागर कापड़ी की भाग 1

मधुशाला

दीप जलाकर नव मयूख से,
         खोल दिया उर का ताला |
नवल दिवस में भेज रहा हूँ  ,
         शुभ स्मृति की मधुशाला ||
Madhushala Dr. Vidhyasagar Kapri Ki
हृदय में नव आनन्दों का,
        छलके परिमल का प्याला  |
और बुलाये हर्षित होकर  ,
         मुस्कानों की मधुशाला ||

प्रीत नवेली,मित्रों से नित,
           आये ले सुख की माला |
और लेखनी गीत सुनाये,
           पा काव्य की मधुशाला  ||

बैरी भी कटु भाष बोलकर,
           दे न सकें उर में छाला |
अधरों में नित मन्दहास हो  ,
         खुले प्रीत की मधुशाला  ||

पथ पर बढ़ते कदम रहें नित  ,
         रोके ना अरि का जाला |
स्वयं दौड़कर गले लगाये,
        गन्तव्यों की मधुशाला  ||



©डाoविद्यासागर कापड़ी

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