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Dr. Vidhyasagar Kapri Ke Dohe Part 5 डॉ. विद्यासागर कापड़ी के दोहे भाग 5

मेरे दोहे 


Dr. Vidhyasagar Kapri Ke Dohe 1-कौन देखता घन यहाँ ,कौन झूलता डाल |
   धन की गठरी बाँधते ,बुनते सब जंजाल ||

2-घन ही तो करते यहाँ ,धरणी का श्रिंगार |
  मुस्काते हैं खेत सब ,हँसती वट की डार ||

3-घन की चादर ओढ़कर ,मनहर लगता व्योम |
वसुधा हित वो मुदित हो ,बरसाता है सोम ||

4-सावन भादो मास में ,घन का नर्तन देख |
   कवि गढ़ते कविता नई ,लेखक लिखते लेख ||

5-पयस्विनी भरकर चली ,तन बल का भण्डार |
  अपनी बाँह पसारती ,मचता हाहाकार ||

©डाoविद्यासागर कापड़ी

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