Top Header Ad

Banner 6

Dr. Vidhyasagar Kapri Ke Dohe Part 7 डॉ. विद्यासागर कापड़ी के दोहे भाग 7

 मेरे  दोहे

1-मक्खी ढूँढे गन्दगी,अलि ढूँढे मधुपान |
   ढूँढे से दोनों मिलें,अपना-अपना ग्यान ||

2-ब्रह्म घड़ी में जो उठे,वो पाये आनन्द |
  सागर ऊषा में खुलैं,हरि द्वार जो बन्द ||

3-माँ की हर आशीष में,कोटि यग्य का सार |
   सागर की हर पीड़ तो, आशीषों से क्षार ||

4-सदा साथ रख लीजिए,मातु चरण की धूल |
    सागर पथ के शूल भी,बन जायेंगे फूल ||

5-माँ को दु:ख ना दीजिए,आता है संताप |
  सागर माँ हँसती रहे,कट जाते सब पाप ||

6-बिन अँधियारा होकहाँ,उजियारे का भान |
  सागर तम बिन ही मिला,किसे विजय का गान ||

7-फिर-फिर फिरता जगत में,मन तू सदा निपंग |
  सागर नाम जपा नहीं,किया नहीं सत्संग ||


   ©डाoविद्यासागर कापड़ी

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

यदि आप इस पोस्ट के बारे में अधिक जानकारी रखते है या इस पोस्ट में कोई त्रुटि है तो आप हमसे सम्पर्क कर सकते है khudedandikanthi@gmail.com या 8700377026