ओ चित्रकार...........
कहां
छुपे हो ओ चित्रकार ?
अनुपम
चित्र उकेर रहे नित ,
जादू
सा तुम फेर रहे नित ।
घन
ये श्वेत श्याम हुये हैं ,
देख
नयन अविराम हुये हैं ।।
स्वर्ग धरा पर रहे उतार ।
कहां छुपे हो ओ चित्रकार ?
नव
रंगों को भरते हो नित ,
अरे
व्यथा को हरते हो नित ।
घन
के रूप प्रदर्शित करते ,
मन
मयूर को हर्शित करते ।।
छेड़ते मन के सोये तार ।
कहां छुपे हो ओ चित्रकार ?
गढ़
लेते हो नित नवल चित्र ,
तुम
धरा गगन करते पवित्र ।
कराते
हो होने का भान ,
चलता
तेरा ही विधान ।।
करते चुपके भू का श्रंगार।
कहां छुपे हो ओ चित्रकार ।।
©डा०विद्यासागर कापड़ी
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