हे गिरिधारी.............
तुम ही हो जग के प्रतिपाला।।
जगती को संकट ने घेरा ।
कहीं न दिखता देव सवेरा ।।
धरती होगी रीती नर से ?
करिये आकर पार भँवर से ।।
हे मधुसूदन , हे वनमाली ।
तुम ही कर सकते रखवाली।।
हे मुरलीधर , हे नारायण ।
आओ करदो दु:ख से तारण ।।
मुस्कानों के दूर हुये घन ।
भू भय से ग्रसित है मोहन।।
तुम आकर पीड़ा हर जाओ ।
भू को रोग रहित कर जाओ ।।
पापी बहुत बड़े हैं माना ।
तुमको केशव पाप मिटाना।।
तुम कहलाते हो करुणाकर ।
आ राधापति अब करुणा कर ।।
क्षमाशील हो तुम यदुनंदन ।
आज बचालो भू का जीवन ।।
रजनी क्यूँ ? कहाँ प्रभात है ।
भू पर कैसा यह निपात है ।।
राधारमण , मुरारी , केशव ।
क्रंदन करता आज सकल भव।।
तेरे रहते कैसा प्रलय ।
कर जाओ धरती को अक्षय।।
आकर कर जाओ तुम निर्भय ।
होगी तेरी भू पर जय-जय ।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
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