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Gaon Ki Mitti Me Jan Thi Yaro गांव की मिट्टी में जान थी यारो


गांव की मिट्टी में जान थी यारो


वो सौ-सौ गुणों की खान थी यारो,
 गांव की मिट्टी में जान थी यारो ।

न थी बीमारी न सांसों का टोटा ,
वो सम्हाले रखती प्रान थी यारो ।
 
गांव की मिट्टी में जान थी यारो।।

सुख में व दुःख में थी सबमें सहाई,
पड़ोस में रखे नित कान थी यारो।

गांव की मिट्टी में जान थी यारो।।

कभी बुलाती थी मंदिर में सबको,
गाती वो स्नेह के गान थी यारो ।

गांव की मिट्टी में जान थी यारो।।

भाजी बहुत थी दही का था रेला,
भरे रखती वो धन-धान थी यारो।

गांव की मिट्टी में जान थी यारो।।

खेतों में चलती बैलों की जोड़ी ,
निराली धरती में शान थी यारो।

गांव की मिट्टी में जान थी यारो।।

कपड़ों को छूती तनों में लिपटती,
अपनेपन का वही भान थी यारो।

गांव की मिट्टी में जान थी यारो।।

न हिम्मत किसी में छूकर जो देखे,
वो तो हमारा अभिमान थी यारो।
गांव की मिट्टी में जान थी यारो।।

सभी को पिरोती माला में चुन-चुन,
यही समस्याओं का निदान थी यारो।
गांव की मिट्टी में जान थी यारो।।

तिलक लगाते थे सभी तो इसी का,
यही तो गीता व कुरान थी यारो।
गांव की मिट्टी में जान थी यारो।।


इसी में बोते थे सपने सभी हम ,
ये तो सपनों की उड़ान थी यारो।
गांव की मिट्टी में जान थी यारो।।

वो सौ-सौ गुणों की खान थी यारो।
गांव की मिट्टी में जान थी यारो।।
            सच में ।

गांव की मिट्टी में जान थी यारो।।
  
©डा०विद्यासागर कापड़ी


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