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Man Laut Chala Gaon Me मन लौट चला गांव में


मन लौट चला गांव में



अपने मन में मैंने तेरे गीत लिखे।
Man Laut Chala Gaon Me मन लौट चला गांव मेंभावों को श्रृंगार  कर प्रीत लिखे।
छलती   रही  मन अंदर,
         कुंठाओं  की  मधुशाला,
आह भरी   मैंने जब भी,
         धधक  रही  थी ज्वाला।
अपने मन में मैंने तेरे गीत लिखे।
भावों को श्रृंगार कर प्रीत लिखे।।
दूर होकर  भी चाहत को,
         मन  बार बार  समझाता।
साया   जब   जब लगती,
          मन धैर्य होना   बहलाता।
अपने मन में मैंने तेरे गीत लिखे।
भावों को श्रृंगार कर प्रीत लिखे।।
किस रोग  का  मर्ज मुझे,
         कैसे इस  मन  समझाऊं।
दर्द   भरा   सैलाब  लिए,
         डोलता कहां कहां फिरूं।
अपने मन में मैंने तेरे गीत लिखे।
भावों को श्रृंगार कर प्रीत लिखे।।
मिलती मुझे सौंधी खुशबू,
         आंगन में  जब  तेरे रहता।
यहां कहां ऐसी आवोहवा,
         जिसे  मैं दिल  की कहता।
अपने मन में मैंने तेरे गीत लिखे।
भावों को श्रृंगार कर प्रीत लिखे।।
मिट्टी भी विरानी यहां की,
         जिससे कुशलक्षेम पूछता।
बहती  हवा  थपेड़ों वाली,
         कैसे सांसों  को समझाता।
अपने मन में मैंने तेरे गीत लिखे।
भावों को श्रृंगार कर प्रीत लिखे।।
नदी  देखकर   मन उबता,
         कल-कल में आवाज कहां।
दूर  दूर  हरियाली  दिखती,
         मन  की   श्यामलता  कहां।
अपने मन में मैंने तेरे गीत लिखे।
भावों को श्रृंगार कर प्रीत लिखे।।

सुनील सिंधवाल "रोशन"(स्वरचित)
   काव्य संग्रह "हिमाद्रि आंचल"



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