कुर्सी..............
कुर्सी तो मिलती है भैया ,
सुन लो चाय पिलाने से ।
कुर्सी कहां मिला करती है ,
आंखों के मटकाने से ।।
कुर्सी तो मिलती है भैया,
सुन लो चाय पिलाने से ।।
भारत का है पुत्र लाड़ला ,
सब जन दिल में रखते हैं ।
जिस पर अपने व परिवार सा ,
विश्वास धरा करते हैं ।।
सोना सदा खरा होता है,
उसको ताप दिलाने से ।
कुर्सी कहां मिला करती है,
आंखों के मटकाने से ।।
कुर्सी तो मिलती है भैया,
सुन लो चाय पिलाने से।
कुर्सी कहां मिला करती है,
आंखों के मटकाने से।।
बचा रहा है जो भारत को ,
उसने लूटा कहते हो ।
पूज रहा है जिसे जगत तुम ,
उसको झूठा कहते हो ।।
समझ बड़ी है अब जनता में,
भटके ना भटकाने से।
कुर्सी कहां मिला करती है ,
आंखों के मटकाने से ।।
कुर्सी तो मिलती है भैया,
सुन लो चाय पिलाने से।
कुर्सी कहां मिला करती है,
आंखों के मटकाने से।।
चौकीदारी करे देश की,
इस माटी का पूजक है ।
जगत गा रहा गान इसी के,
ये विश्व गुरु का सूचक है।।
मिलती नहीं ख्याति किसी को,
हाथों के लटकाने से ।
कुर्सी कहां मिला करती है,
आंखों के मटकाने से ।।
कुर्सी तो मिलती है भैया,
सुन लो चाय पिलाने से।
कुर्सी कहां मिला करती है,
आंखों के मटकाने से।।
बड़ी लगन से सेवा करता,
ये तो मां का सेवक है ।
भारत मां को मां कहता है,
देश भक्ति उपदेशक है।।
ये वो सच्चा दर्पण है जो ,
चटके ना चटकाने से ।
कुर्सी कहां मिला करती है,
आंखों के मटकाने से।।
कुर्सी तो मिलती है भैया,
सुन लो चाय पिलाने से ।
कुर्सी कहां मिला करती है,
आंखों के मटकाने से ।।
© “ सागर "
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