कान्हा...............
कान्हा ।अब बरसत हैं यहां नैन हमारे ।
काहे ,दे गये छलिया झूठी आशा।
नित दरश की बढ़ती जाये पिपासा।।
कह दे हमको, छोड़ा किसके सहारे ।
कान्हा अब बरसत हैं यहां नैन हमारे ।।
अब यहां,कौन सुनाये मुरली की धुन ।
यहां नित ताने देते सब ही चुन-चुन ।।
कह दे किसन,हम किसको यहां पुकारैं ।
कान्हा अब बरसत हैं यहां नैन हमारे ।।
यहां मौन हैं गउयें व मौन ग्वाल हैं ।
सब नयनों के अब यहां भरे ताल हैं ।।
कह जा हम यहां कैसे तुझे बिसारैं ।
कान्हा अब बरसत हैं यहां नैन हमारे ।।
©डा०विद्यासागर कापड़ी
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