मैं कवी हूँ कि कवि हूँ मैं कवी हूँ कि कवि हूँ कभी हूँ कि नहीं हूँ घस्यारा है या कलमकार किसको चाहिए जय -जयकार ! बदलोगे समाज को? या पहनोगे हार ! ढोल -नगाड़े बजा रहे हो लिखना कब सीखोगे यार ? सर्वाधिकार…
कैसी यह भारतीयता कैसी यह भारतीयता कैसा लोकतंत्र शोषित है लाचार यहां शोषक विचरता स्वतंत्र पंख लगा उड़ गए मंथन और विचार चारों और फैला ,आडम्बर और व्याभिचार धूमिल होती छवि देश की धुमिल गरिमा-गान राष्ट्रच…
प्रजातंत्र रखवाले बदल रही है सभ्यता बदल रहा परिवेश लुटेरे घूम रहे हैं बना के साधु , "वेश" शत-शत नमन करो इनको ये प्रजातंत्र रखवाले हैं मदिरा के प्यालों से पानी की प्यास बुझाते हैं बचना इन …
मैं मैं अपने "मैं" को तराशता हूँ मैं खुद अपनी मंजिल और रास्ता हूँ मैं भरा हूँ स्वाभिमान से एक क्षण को भी फिरा नहीं ईमान से मैं लिखता हूँ कविता गाता हूँ गीत नहीं किसी से वैर भाव सब मेरे मन क…
आवागमन ना जाने कितने जन्मो से संयोग बना है आपसे स्नेह ,प्रेम अपनत्व के रिश्ते जीवन भर साथ थे भूला नहीं बचपन अपना स्नेह,नेह का कलकल बहता था झरना जा रहे हो छोड़कर ! दुख होता है ,मन रोता है जानता हूँ मर…
कविता कविता मन के उदगारों का गीत हुआ करती है पीडित -व्यथित जन के मन का मीत हुआ करती है कविता वह मंत्र है जो देती मन को शान्ति मिटा देती है जो तिमिर आव्रत लोक की भ्रान्ति मन में ,प्राणों में श्वासों-स…
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