कविता
कविता मन के उदगारों का गीत हुआ करती है
पीडित -व्यथित जन के मन का मीत हुआ करती है
कविता वह मंत्र है जो देती मन को शान्ति
मिटा देती है जो तिमिर आव्रत लोक की भ्रान्ति
मन में ,प्राणों में श्वासों-सहवासों में
अध्ययन में ,चिंतन में,आचार में,विचार में
जीवन में,जीवन के उमंग-तरंग में
शुभ -संकल्प में ,आत्मचितंन में ,क्रोध-क्रंदन में
आत्मा में ,परमात्मा में और सद-महात्मा में
है जिसकी सुवासित गंध
बसी एक कविता ही तो है !
हाँ--
मैं कवि हूँ नहीं
किन्तु जीवन देखो --
एक कविता ही तो है .
©राजेन्द्र सिंह रावत
18/5/2017(9.30)
प्रकाशित रचना
सन-2005
14/10/2005
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