कैसी यह भारतीयता
कैसी यह भारतीयता
कैसा लोकतंत्र
शोषित है लाचार यहां
शोषक विचरता स्वतंत्र
पंख लगा उड़ गए
मंथन और विचार
चारों और फैला ,आडम्बर और व्याभिचार
धूमिल होती छवि देश की
धुमिल गरिमा-गान
राष्ट्रचिंतक सो गए
लम्बी चादर तान
खद्दर खादी बिक गए
बिक गया ईमान
शासन और प्रशासन में
बैठें है चोर और बेईमान
कुर्सी आज अराध्य सभी की
अवतार बना है पैंसा
नौटंकी सब दिखला रहे
नेता हो या अभिनेता
कहे कवि -राजेन्द्र कुछ ऐसा
करनी जिसकी ,जैसी होगी
वो भरेगा वैसा .
सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह रावत©
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