गा ले मन
मिले सुख या व्यथा घनेरी ,
मिले निशा या भोर सुनहरी |
कभी शूल या कभी सुमन हों ,
मुक्त रहो तुम या बन्धन हो ||
मुदित रहो नित कर्मपथों पर ,
चढ़ ही लोगे तुम रथ में भी |
गा ले मन कंटक पथ में भी ||
माना सबने सायक ताने ,
या अपने भी थे अन्जाने |
पर तूँने सब हैं पहिचाने ,
कुछ खोकर भी जा ले पाने ||
कभी मिलेगा दु:ख का तल तो,
कभी चढ़ेगा सुख छत में भी |
गा ले मन कंटक पथ में भी ||
जगती की है रीत पुरानी ,
राह दिखाता है अन्जानी |
फिर गढ़ता है एक कहानी,
नयनों को देता है पानी ||
यहाँ संभल भरोसा करना ,
होता असत नित शपथ में भी |
गा ले मन कंटक पथ में भी ||
गा ले मन कंटक पथ में भी ||
©डाoविद्यासागर कापड़ी
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