प्रजातंत्र रखवाले
बदल रही है सभ्यता
बदल रहा परिवेश
लुटेरे घूम रहे हैं
बना के साधु , "वेश"
शत-शत नमन करो इनको
ये प्रजातंत्र रखवाले हैं
मदिरा के प्यालों से
पानी की प्यास बुझाते हैं
बचना इन धुर्तों से
स्वंय को जो सर्वे-सर्वा बताते हैं
राजनीति के कपट जाल में
माई-बाप बन जनता का शासन पर अधिकार जमाते हैं
बातें बड़ी-बड़ी और खोखले वादे
हर पाँच साल में आकर घर -घर ,तुमको बहकाते हैं
भेड़ बन हम क्यों भेडियों के आगे नत-मस्तक हो जाते हैं
क्यों जाति -धर्म पंथवाद में फंस कर ,नारे उन्मादी हैं
आखिर क्यों ?मानवता को कर तिरोहित ,चम्मचा बन खुश हो जाते हैं .
राजेन्द्र सिंह रावत©
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