आवागमन
ना जाने कितने जन्मो से
संयोग बना है आपसे
स्नेह ,प्रेम अपनत्व के रिश्ते
जीवन भर साथ थे
भूला नहीं बचपन अपना
स्नेह,नेह का कलकल बहता था झरना
जा रहे हो छोड़कर !
दुख होता है ,मन रोता है
जानता हूँ मरण सत्य है
और वस्त्र बदलना है आत्मा का
आवागमन के इस चक्र में
विलय होना भर है देह का
ना जाने अब कब मोका मिले संगम का
पुन: संयोग घटित हो आपसे मिलन का
मेरा शत -शत कोटी प्रणाम आपको अर्पित है
छोड़ गये हो जो मधुर स्म्रति ,वह क्षण ,प्रहर ,दिवस अभी संचित है.
राजेन्द्र सिंह रावत©
22/6/2016(RSR)
यह कविता मैंने अपने नाना जी के देहावसान पर दि०29/8/2011को लिखी थी.
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