सागर के दोहे...........

भारत माँ है मौन ।
नेता कुर्सी को लड़ें ,
देश बचाये कौन ।।
२- रक्षक गाली खा रहे,
सिर चढ़ते हैं चोर ।
मानवता जाने लगी ,
फिर जंगल की ओर ।।
३- चक्रव्यूह नित रच रहे,
नव-नव सारे चोर ।
अभिमन्यू है ऐक ही,
कैसे पाये छोर ।।
४- ओ पालक तूने दिया,
बहुत शीत का कोप ।
अधरों से भी हो गया ,
अरे हास का लोप ।।
५ - धनी ओढ़ते चादरी ,
गगन ओढ़ते दीन ।
ऐसी दोगे शीत तो ,
जीवन लोगे छीन ।।
६ - तनिक मंद कर शीत को,
जग के पालनहार ।।
जो रहते फुटपाथ में,
जीवन देंगे हार ।।
७ - सुनो देव इस शीत में ,
रोते बूढ़े हाड़ ।
नयनों से पानी गिरे ,
किटकिट करते दाड़ ।।
८ - अरे विनय सुन लीजिए,
करते हैं नित जाप ।
कम करिये कुछ शीत को ,
सूरज का दो ताप ।।
९ - कुहरा-कुहरा हो गया,
मेरा सारा गाँव ।
अकड़ गये हैं हाथ भी,
अकड़े सबके पाँव ।।
©डा०विद्यासागर कापड़ी
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