बात मानते.............

यूँ न धरा को रोना आता।
वसुधा कुटुंबकम अपनाते,
अरे कहाँ कोरोना आता।।
रिपुता की सारी सीमायें,
लाँघ गई है जब मानवता।
बना बहाने देश,देश को,
खाने को लालायित रहता।।
छोड़ बीज रिपुता के जग को,
नेह बीज को बोना आता।
वसुधा कुटुंबकम अपनाते,
अरे कहाँ कोरोना आता।।
अरे चीन ने मानवता पर,
छुप-छुप कर प्रहार किया है।
उबर नहीं पायेगा सदियों,
ऐसा नरसंहार किया है ।।
जिसने मानव के जीवन को,
काल कंठ में अरे धकेला।
वो हँसकर के अपने घर में,
सजा रहा खुशियों का मेला।।
उसकी चाल कुटिल है देखो,
उसका दर्प मिटाना होगा।
जग के सब देशों को मिलकर,
उसका नाम हटाना होगा।।
विस्तारवाद है कुटिल सोच,
यूँ न चीन को ढोना आता।
वसुधा कुटुंबकम अपनाते,
अरे कहाँ कोरोना आता।।
मानवता के दुश्मन हैं जो,
उसकी चीजैं नहीं छुयेंगे।
अपने सीमित संसाधन के,
बल पर ही हम सभी जियेंगे।।
क्या रखा है अरे शहर में,
अपने-अपने गाँव रहेंगे।
अपने गाँवों में खेतों को,
जोत-जोत खुशहाल करेंगे।।
चीनी चीजों का देखो अब,
कभी नहीं उपयोग करेंगे।
देशी चीजैं ही अपनाकर,
मन का नियमित योग करेंगे।।
अरे चीन की कुटिल चाल का,
चित्र न यहाँ घिनौना आता।
वसुधा कुटुंबकम अपनाते,
अरे कहाँ कोरोना आता।।
©️डा० विद्यासागर कापड़ी
सर्वाधिकार सुरक्षित
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