पहाडों की याद
हमने पहाडों की याद में यूँ ज़िन्दगी पार की,
करवटैं बदल-बदल कर रातैं गुजार दी ||
ये पहाड़ चीख-चीख कर पुकारे यारो,
अब इन बीरान पहाडों को कौन सँवारे यारो ||
तेरे जाने से यहाँ की बयार छली गई,
पहाडों की फिजाँ व रौनकैं चली गई ||
दिखता होगा वहाँ भी यकीनन चाँद तो,
आती होगी तुम्हें भी पहाडों की याद तो |
रहते होगे फ्लैट में कूलरों की वात में,
पर सुनाई देती होगी तुम्हें पहाडों की धात तो |
खुश रहो तुम ये देता दुआ पहाड़ है,
लाना एक बार भगवती की छात तो |
बचे कुछ बुजुर्ग हैं अब भी तो गाँव में,
आकर कर लेना उनसे खुशी से बात तो |
दिखता होगा वहाँ भी यकीनन चाँद तो,
आती होगी तुम्हें भी पहाडों की याद तो ||
सर्वाधिकार सुरक्षित डाoविद्यासागर कापड़ी
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