गीत
था हृदय में दम्भ मेरे भर गया,
और मैं विजय की कामना करता रहा |
परिमल से भरे सुमनों की चाह में,
शूलों से ही मैं सामना करता रहा ||
दुत्कार कर द्वार आये भिक्षु को,
देवों की ही मैं अर्चना करता रहा |
था हृदय में दम्भ मेरे भर गया,
और मैं विजय की कामना करता रहा ||
माँ ने दी थी कोख उसको भूलकर,
मैं वामा की ही वन्दना करता रहा|
था हृदय में दम्भ मेरे भर गया,
और मैं विजय की कामना करता रहा ||
अपने उर की धूल को ही ढाँककर,
मैं अपने से ही वञ्चना करता रहा |
था हृदय में दम्भ मेरे भर गया,
और मैं विजय की कामना करता रहा ||
©डाoविद्यासागर कापड़ी
था हृदय में दम्भ मेरे भर गया,
और मैं विजय की कामना करता रहा |
परिमल से भरे सुमनों की चाह में,
शूलों से ही मैं सामना करता रहा ||
दुत्कार कर द्वार आये भिक्षु को,
देवों की ही मैं अर्चना करता रहा |
था हृदय में दम्भ मेरे भर गया,
और मैं विजय की कामना करता रहा ||
माँ ने दी थी कोख उसको भूलकर,
मैं वामा की ही वन्दना करता रहा|
था हृदय में दम्भ मेरे भर गया,
और मैं विजय की कामना करता रहा ||
अपने उर की धूल को ही ढाँककर,
मैं अपने से ही वञ्चना करता रहा |
था हृदय में दम्भ मेरे भर गया,
और मैं विजय की कामना करता रहा ||
©डाoविद्यासागर कापड़ी
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