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Dr. Vidhyasagar Kapri Ke Dohe Part 2 डॉ. विद्यासागर कापड़ी के दोहे भाग 2

 मेरे  दोहे

1-पथ में मित्र अमित्र का, कब रहता है भान |
   जब पग में काँटा चुभे ,तब होती पहचान ||
Dr. Vidhyasagar Kapri Ke Dohe Part

2-जो माँ देती अन्न को, जो देती है नीर |
  जो उसको गाली करे, तन को डालो चीर ||

3-कब तक सैनिक के यहाँ, बँधे रहेंगे हाथ |
   कहो सीमा पार करो, काटो धड़ से माथ ||

4-माँ का आँचल ओढ़कर, रहते जो गद्दार |
   थामो तुम तलवार को, करो उदर पर वार ||

5-छुपकर हैं रहते कई, आस्तीन के साँप |
  भारत माँ ममतामई ,सहती सारे ताप ||

6-खाते भारत भूमि का,कहते पाकिस्तान |
    उनका सीना चीरकर ,भेजो कब्रिस्तान ||


©डाoविद्यासागर कापड़ी

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