सागर की कुण्डलियाँ...........

सपन अधूरे ना रहें,
कुसुमित हों हर बार।
नेह मिले,मिलता रहे,
मिले न कोई खार।।
मिले न कोई खार,
हास नित रहे अधर में।
रहें बरसते सदा,
सुखों के घन ही घर में।।
कह सागर कविराय,
काम हों सारे पूरे।
है यही कामना, रहे,
न कोई सपन अधूरे।।
(२)
अधरों में परिहास हो,
काया रहे निरोग ।
परिवार के जन सभी,
करें सुखों का भोग ।।
करें सुखों का भोग,
योग हो शुभ का घर में ।।
रिपु बन जायें मीत,
हाथ हो शिव का सर में ।।
कह सागर कविराय,
भजन हों सदा घरों में ।
रहे देव का नाम,
सभी के ही अधरों में।।
(३)
चन्दन हो शिवनाम का,
कुमकुम माँ का शीश ।
मिले सभी से नेह ही,
मिले सदा आशीष ।।
मिले सदा आशीष,
आप नित बड़भागी हों ।
कहें भारत की जय,
देश के अनुरागी हों ।।
कह सागर कविराय,
गेह हो जाये नन्दन ।
छू लें जब-जब आप,
बने माटी भी चन्दन ।।
©डा०विद्यासागर कापड़ी
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