खोज..............
जो इस उर को आ जाता ।
तिमिर हारकर , दीपशिखा बन,
जीवन पथ पर छा जाता ।।
दुश्कर जीवन भी उर में नित,
गीत मनोहर धर जाता ।
सजल नयन की पीड़ा को हर,
मधु उछास ही भर जाता ।।
दुर्जन के उर के कोने में,
सज्जन का दर्शन पाता ।
मैं भभूत के गोलों में भी,
चन्दन के ही कन पाता ।।
मेरी देह बनी है जिससे,
दिख जाती जो वो माटी।
तो उर कहता क्यूँ रिपुता में,
जीवन की साँसैं काटीं ।।
मैं के पीछे छुपा हुआ जो,
तू का दर्शन कर पाता ।
मैं निपात से बच हृदय में ,
कुसुमित कोपल भर पाता ।।
मैं ठोकर से छीन रागिनी ,
गीत सलोने गा जाता ।
तिमिर हारकर दीपशिखा बन,
जीवन पथ पर छा जाता ।।
माहुर में भी अमिय खोजना ,
जो इस उर को आ जाता ।
तिमिर हारकर दीपशिखा बन,
जीवन पथ पर छा जाता ।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
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