मेरी बाल कविता...........
मैं बालक............
सबमें निज को पाता हूँ ।
मानव का है खून दौड़ता,
मानव मैं कहलाता हूँ ।।
कहाँ अलग है जन्म किसी का,
कहाँ अलग है किलकारी ।
पय का पान कराती बोलो,
कहाँ अलग है महतारी ।।
भारत का मैं पुत्र लाड़ला,
अन्न इसी का खाता हूँ ।
मानव का है खून दौड़ता ,
मानव मैं कहलाता हूँ ।।
बन जाऊँगा देव अरे मैं,
मुझको अगर न बाँटो तुम ।
हिन्दू,मुस्लिम, सिख, ईसाई,
कहकर कभी न छाँटो तुम ।।
मैं ही तो हूँ राम,किसन भी,
निज का भाग्य विधाता हूँ ।
मानव का है खून दौड़ता,
मानव मैं कहलाता हूँ।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
सर्वाधिकार सुरक्षित
0 टिप्पणियाँ
यदि आप इस पोस्ट के बारे में अधिक जानकारी रखते है या इस पोस्ट में कोई त्रुटि है तो आप हमसे सम्पर्क कर सकते है khudedandikanthi@gmail.com या 8700377026