सागर के दोहे..........
(विविध)
१- रखते हैं उर में सदा,

उर को रीता राखिए,
आयेंगे गोपाल।।
२- जग में ऐसे भागते ,
घूमें जैसे बैल।
लेकिन सुख पाया नहीं,
थे सपनों के शैल।।
३- पिय के हिय में हो छुपी,
पिया हृदय की बात।
ऐसी पावन नेह में,
नित होता प्रभात।।
४- सबसे हँस के बोलिये,
जीवन है दिन चार ।
किसे पता है काल भी,
कब ले आये हार ।।
५- चिंता को विष जानिये,
तन को धीरे खाय ।
जो चिंता को खा गया,
उर में राम समाय ।।
६- भरी चित्त में डाह तो,
राम कहाँ लें ठौर ।
भरे उदर जाती नहीं,
अरे खीर की कौर ।।
७- उर में नहीं उछाह तो ,
कहाँ राम लें ठौर ।
हो निपात का मास तो ,
कब आती है बौर ।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
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