वहाबियों का इंतकाम
जंक लोहा तप्त कर सही वार
करो।
रूगणं समवाहकों का इंतकाल करो।।
जाग उठो जन जग के तपस्वी,
शयन कक्ष की
मर्यादा छोड़ो।
तब्लीगी जमात
के भ्रम की,
आनुवंशिक वृद्धि
को तोड़ो।
रूगणं समवाहकों का इंतकाल करो।।
अमर्यादित पोटली
में जकड़े,
वहसी शैतानों
की कब्र गढ़ो।
प्रपंचों के दानव
शहदारों को,
औकात में रहने का इल्म
करो।
रूगणं समवाहकों का इंतकाल करो।।
कुकृत्य के
विभत्स दानवों ने,
मानवता को
शर्मशार किया।
हिदायत परे
तांडव एकसूत्र में,
जहरीले सर्प बन नागवार
किया।
रूगणं समवाहकों का इंतकाल करो।।
संयम की समय रेखा पार कर,
समूल विध्वंस की रेखा खींचों।
अनैतिक अपराधी जाहिलों
को,
साम दंड भेद प्रत्यंचा से भींचो।
रूगणं समवाहकों का इंतकाल करो।।
कर्तव्य प्रण के
अडिग धनुर्धर,
अमिट लक्ष्मण
रेखा नींव धरो।
देवदूतों के
राहों जो रोड़ा बनते,
अपराधियों के मन में भय भरो।
रूगणं समवाहकों का इंतकाल करो।।
सुनील सिंधवाल "रोशन" (स्वरचित)
काव्य संग्रह "चाहत
के पन्ने"
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